Book Title: Shil Tarangini Author(s): Jaykirtisuri, Somtilaksuri Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir वृत्ति शीलोप ख वल्लीमूलोत्खननकोलं, सुखमेव च वल्ली कर्मजलधरान्निवर्षणेन प्रापुर्जावुकत्वात्, त- Ka स्या दुःखवल्या मूलमुत्पतिनूमिः, तदुत्खननाय की कीलकमिव. शीलेन चिराचीर्ण:॥॥॥ खलढाणि निःकृत्येते. कृतशिवसुखसमील मिति, कृतो विहितः शिवसौख्यानां मोहसौख्या नां सन्मीलः प्राप्तिर्येनेति, नित्यमिति निरंतरं, दानतपोनावनादीनि हि यावत्पालितफलावहानि नवंति, न तथा शीलं, तहि चिरमनुपाल्यैककृत्वस्तभंजने संपूर्णवतन्नंगात्, अतस्तन्निरंतर सेव्यं. यउक्तं-बुप्रंतिनामन्नारा । तच्चिय बुनंति वीसमंतेहिं ।। सीलन्नरो वोढवो । जा. वजीवं अवीसामो ॥१॥ इति नावः ॥ इहपरनवप्राप्यं तन्माहात्म्यमेव गाथायुगलेनाद ॥मूलम् ।।-सबी जसं पयावो । माहप्पमरोगया गुणसमिही ॥ सयलसमीहियसिही। सीलान इह नवेवि नवे ॥ ३ ॥ परलोएवि हु नरसुर-समिहिमुव जिकण सोलजरा |॥ तिहुयणपणमियचरणा । अरिणा पावंति सिदिसुहं ॥ ४ ॥ व्याख्या-इह नवे तावत् शीलादजिह्मब्रह्मसेवनालक्ष्मीश्चक्रवर्त्तिवासुदेवबलदेवमांमलिकादिश्रीः, यशःसर्वदिग्गामी सा. धुवादः, प्रतापोऽखंमिताझैश्वर्य, माहात्म्यं सर्पादेः पुष्पमालादिदर्शनं, अरोगता ज्वरातिसा. For Private And PersonalPage Navigation
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