Book Title: Shil Tarangini
Author(s): Jaykirtisuri, Somtilaksuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir वृत्ति शीलोपर्षन् । वध्यो नवति किं सुतः॥ २६ ॥ इत्यादिबहुविज्ञप्तो । नृपः शुक्षांतमंत्रिनिः॥ न कस्यापि वचो मेने । नोगीव प्रत्युता. ॥ ए ॥ कुपत्.॥ २७॥ विशिष्यविकसक्त्र-पंकजा गुणसुंदरी ॥ नोदये स्वपुण्यकर्माणि । ध न्याहमिति मानिनी ॥२॥ राजहंसीव काकस्य । मकस्यानुयायिनी ॥ तज्जीर्णमंदिरं प्राप्य । ददौ पत्यरथासनं ॥ २०॥ युग्मं ॥ गब राजसते स्वैरं । किमत्रास्ति तवोचितं ।। सु वर्ण यत्र यत्रैति । तत्र तत्रार्थमावहेत् ॥ ३० ॥ रोरेणोदीरिता प्राह । मावादीरीदृशं पुनः॥ * स्वामिंश्चिंतामणिप्राय-स्त्वमेव शरणं मम ॥ ३१ ॥ युग्मं ॥ सा नंगुरनखाप्यस्य । जटा. धारान् शिरःकचान्॥ यावत्प्रारत्नते मोक्तुं । विनयावनतानना ॥ ३२ ॥ तावन्मलयजस्यापत्र । सौरन्यमुपलभ्य सा ।। साश्चर्यं चिंतयित्वाथ । ज्ञाततत्वाऽवदत्पति ॥ ३३ ॥ स्वामिन द्य त्वया काष्ट-नारः क विनिवेशितः ॥ तेनोचे नोजनप्राप्त्या। मुक्तः कांदविकापणे ॥३॥ ततस्तेन समं गत्वा । नारमानाययगृहे ॥ अनबन्नो हि किं नानु-स्तेजोमालिन्यमभुते ॥ ॥ ३५ ॥ श्रीखंडखंडमादाय । गत्वा सौगंधिकापणं ॥ विक्रीय तेन वित्तेन । वस्त्रानरणमग्र For Private And Personal

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