Book Title: Shil Tarangini
Author(s): Jaykirtisuri, Somtilaksuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
वृत्ति
शीलोप ॥ ६ ॥ चक्रे मुग्धापि वैदग्ध्यं । पत्युः प्रत्युत सा तथा ॥ यथा चित्तेषु ददाणा-मपि चि-
त्रमजीजनत् ॥ ४ ॥ क्रमेण सर्वकृत्येषु । प्रवृत्ते नर्तरि स्वयं ॥ निश्चिंता वहिकावर्णा॥ ११॥ वलीमालमलोकयत् ॥ ४ ॥ तत्र सप्तौषधीयोगं । ज्ञात्वा कल्याणसिध्दिं ॥ योजयित्वेष्टि
काचक्रे । चकार कनकोच्चयं ॥ ४ ॥ विशेषचिंतानिर्मुक्ता । निर्मग्नेव सुधांबुधौ ॥ धर्माया रामेऽधिकं रेमे । मुंगीव सरसीरुहे ॥ ५० ॥ पुण्यपालोऽपि नूपाल । श्व लक्ष्मीविलासक
त् ॥ प्रसिदिं परमां प्राप । दानवैदग्ध्यकेलिन्तिः ॥ ५१ ॥ यथा लक्ष्मीस्तथा धर्म-स्तेन दानं ततो यशः ॥ तथा च तस्य वैदग्ध्य-मवर्किटोत्तरोत्तरं ॥ ५ ॥ नक्तंच-श्रीपरिचयाजडा अपि ॥ नवंत्यनिझा विदग्धचरितानां ।। नपदिशति कामिनीनां । यौवनमद एव ललितानि ॥ ५३ ॥ तत्रत्यराजादेशेन । भुवमादाय धर्मधीः॥ नत्तुंगतोरणं तत्र । जिनचैत्यमची. करत् ॥ ५४॥ नित्यमेकत्रवालेन । जडात्मा जायते नरः ॥ इति राजांगजाकार्षी-देशांत- रमति पतिं ॥ ५५ ।। वाहनानि प्रन्नूतानि । क्रयाणकशतानि च ॥ आदाय महतीं सार्थरचनामुत्सुकश्च सः ॥ ५६ ॥ पायमपाश्रेयानां । वाहनं वाहनार्थिनां ॥ यवामि यः सहा
॥ ११ ॥
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 585