Book Title: Shil Tarangini
Author(s): Jaykirtisuri, Somtilaksuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शीलोप || 20 || www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsuri Gyanmandir दीत् || ३६ || केशान् क्लेशानिवोन्माच्य । तैलेनाभ्यज्य तस्य सा ॥ करांहिनखसंस्कार -पूवैं स्नानमकारयत् ॥ ३७ ॥ रंको राजसुतालाना - पुण्येनैवैष पालितः ॥ पुण्यपाल इति स्पष्टं । सान्वयं नाम निर्ममे ॥ ३८ ॥ यस्मात्तेन तदानिन् । बेदयित्वा पादपं । नृत्यैरानाययहं । चांदनं नृपनंदिनी ||३|| नित्यशी भुज्यमानानि । व्यवहारबहिष्कृतैः ॥ त्रुट्यंति मेरुशृंगाणि । ज्ञात्वेति गुणसुंदरी ॥ ॥ ४० ॥ निःशेषमपि विक्रीय । कृत्वा हेमसहस्रकं ॥ क्रयविक्रयसंक्रांत्या । व्यवहारमसूत्रयत् ॥ ४१ ॥ देयोपादेय विज्ञान-वंध्यं पशुमिवाधिपं ॥ विज्ञा विज्ञाय शिक्षार्थं । बहिर्ग्राममुपानयत् ॥ ४२ ॥ मातृकां पाठयित्वाथ । ज्ञापयित्वाकरावलिं ॥ गणितव्यवहारेऽपि । प्रावयमनयत्पतिं || ४३ ॥ वस्त्रक्रयाणकादीनां । शिक्षयित्वा परीक्षणं ॥ तमन्वशिक्षकां ते । ||देयोपादेयकर्मसु ॥ ४४ ॥ सर्वविद्यासु निष्णात - धिषणा गुणसुंदरी ॥ तमल्प दिवसैश्वक्रे । ध ककमा ॥ ४५ ॥ ततः सार्थेन संगत्य । गत्वा पोतनपत्तनं ॥ आपणादिव्यवहृतौ । तमनिज्ञतमं व्यधात् For Private And Personal वृत्ति ॥ १० ॥

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