Book Title: Shil Tarangini
Author(s): Jaykirtisuri, Somtilaksuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir झीलोप ॥ ७ ॥ ॥४॥ देवी कमलमालास्ति । तस्याईर्मशालिनी ॥ अनंगनोगसौनाग्या । लालितस्मर- वृत्ति - कुंजरा ॥ ५ ॥ तस्यां दैवतसंघाना-मुपयाचितकवजैः ॥ नदपादि चिरादेका । सुता सुतशताधिका ॥ ६ ॥ धन्यमन्यो नृपोऽतुळ । जन्मोत्सवमचीकरत् ॥ अथाह्वयच्च सान्वर्थे । नाम्ना तां गुणसुंदरीं ॥ ७॥ कामद्रुमलतेवेयं । वईमाना दिने दिने ॥ मैंदवीव कला जज्ञे । सर्वेषां प्रियदर्शना ॥ ७॥ माद्यउन्मादकुख्यानिः । सिक्तस्तत्तनुकानने ॥ हावन्नावलसतायो । ववृ यौवनद्रुमः ॥ए ॥ साऽन्यदाऽधीत्य शास्त्राणि | सर्वांगीण विनूषणा ॥ मात्रादेशात्सनामागा-पितुः पदनिनंसया ॥१०॥ चतुःषष्टिकलापूर्णी । साक्षादिव सरस्वती ।। तनयां वि.* नयानम्रा-मंकमारोपयन्नृपः ॥११॥ सत्नां पश्यन्नयोन्मत्त-शृंगारैकतरंगिणीं ॥ जगंति तृणवन्मने । सोतर्मद श्व हिपः॥१२॥ दिव्या सन्ना सुराश्वामी। सेवकाः कामितश्रियः।।अदं विंशः किमन्या । स्वर्गे किंचिहिशिष्यते ॥ १३ ॥ | इत्यादिगर्वहृत्पूरा-ऽजीणोंकवशादिव ॥ स दंमाक्रांतनोगीवो-जगार गरलं वचः ॥ ॥१४॥ कस्य प्रसादप्रासाद-देवतायितमाप्य नोः॥ भुंजध्वं भुवि साम्राज्यं । नवंतो ना For Private And Personal

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