Book Title: Shat Pahuda Grantha Author(s): Jain Siddhant Pracharak Mandali Devvand Publisher: Jain Siddhant Pracharak Mandali Devvand View full book textPage 9
________________ → पट पाहुड़ ग्रन्थ *< -भ श्री कुन्दकुन्द स्वामी विरचित दर्शन पाहुड़ [प्राभृत] काऊ णमुक्कारं जिणवर वसहस्स वढमाणस्स । दंसणमग्गं वोच्छामि जहाकम्पं समासेण ॥ १ ॥ कृत्वा नमस्कारं जिनवर वृषभस्य वर्धमानस्य । दर्शनमार्गं वक्ष्यामि यथाक्रमं समासेन ॥ अर्थ - श्रीवृषभदेव अर्थात् श्री आदिनाथ स्वामी को और श्रीवर्द्धमान अर्थात् श्रीमहाबीर स्वामी को नमस्कार करके दर्शन मार्ग को संक्षेप के साथ यथा क्रम अर्थात् सिलसिलेवार वर्णन करता हूँ । दंसणमूलोधम्मो उवइहोजिणवरेहिं सिस्साणं | सोऊणसकण्णे दंसणहीणो ण वंदिव्वो ।। २ ॥ दर्शनमूलोधर्मः उपदिष्टोनिनवरैः शिष्याणाम् । तं श्रुत्वा स्वकर्णे दर्शनहीनो न वन्दितव्यः ॥ अर्थ - श्रीजिनेन्द्रदेव ने शिष्यों को धर्म का मूल दर्शन ही बताया है, अपने कान से इसको अर्थात् जिनेन्द्र के उपदेश को सुन कर मिथ्या दृष्टियों अर्थात् धर्मात्मापने का भेष धरनेवाले मिथ्यात्वी साधु आदिकों को [ धर्म भाव से] बन्दना करना योग्य नहीं है । दंसणभट्टाभट्टा दंसणभट्टस्सणत्थिणिव्वाणं । सिज्यंतिचरियभट्टा दंसणभट्टासिज्झति ॥ ३ ॥Page Navigation
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