Book Title: Shastro ke Arth Samazne ki Paddhati Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 4
________________ ( ४ ) किस प्रयोजन सहित है, किस जीव को कार्यकारी है ? इत्यादि विचार करके उसका यथार्थ अर्थ ग्रहण करे, पश्चात् यपनी दशा देखे, जो उपदेश जिस प्रकार अपने को कार्यकारी हो, उसे उसी प्रकार आप अंगीकार करे और जो उपदेश जानने योग्य ही हो, तो उसे यथार्थ जान ले।" उपर्युक्त प्रकार से जिनागम के अध्ययन का प्रयोजन मात्र अपना हित अर्थात् मिथ्यात्व का नाश करना है। ___मो. मा. प्र. पन नं. २६६ में कहा भी है कि-"इन प्रकारों को पहिचानकर अपने में ऐसा दोप हो तो उसे दूर करके सम्यक श्रद्धानी होना, औरों के ही ऐसे दोप देखकर कपायी नहीं होना क्योंकि अपना भला बुरा तो अपने परिणामों से है। औरों को तो रुचिवान् देखे तो कुछ उपदेश देकर उनका भी भला करे । इसलिए अपने परिणाम सुधारने का उपाय करना योग्य है, सर्वप्रकार के मिथ्यात्वभाव छोड़कर सम्यग्दृष्टि होना योग्य है क्योंकि संसार का मूल मिथ्यात्व है। मिथ्यात्व के समान अन्य पाप नहीं है।" शास्त्राभ्यासी की अन्तर्भावना — आगे टोडरमलजी साहव पन नं. २५७ में बताते हैं कि शास्त्र के अभ्यासी की अन्तर्भावना कैसी होनी चाहिये- "उपदेश से सावधान होकर ऐसा विचार किया कि-अहो ! मुझे तो इन बातों की खवर ही नहीं, मैं भ्रम से भूल कर प्राप्त पर्याय ही में तन्मय हुआ परन्तु इस पर्याय की तो थोड़े ही काल की स्थिति है तथा यहां मुझे सर्व निमित्त मिले हैं, इसलिये मुझे इन वातों को बरावर समझना चाहिये क्योंकि इनमें तो मेरा ही प्रयोजन भासित होता है।"Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20