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(१) शब्दार्थ --- शब्द का अर्थ (२) नयार्थ - यह कथन किस नय की मुख्यता से किया है यह समझना (३) मतार्थ - यह कथन किस प्रकार की मान्यता को सम्यक् कराने की मुख्यता से किया गया है यह समझना (४) आगमार्थ - आगम में प्रसिद्ध अर्थ क्या है उससे मिलान करना ( ५ ) भावार्थ - इष्टार्थ तो वीतरागता है अतः यह कथन - वीतरागता की साधना में हेय है या उपादेय है, यह समझना । इस प्रकार पांचों प्रकारों का उपयोग करके शास्त्रों का अध्ययन करे तो यथार्थ भाव भासन होकर आत्म-कल्याण का मार्ग प्राप्त हो । उपर्युक्त पांचों प्रकारों में भी नयार्थ सबसे ज्यादा समझने योग्य है |
शास्त्रों का अर्थ समझने की मास्टर कुञ्जी
संक्षेप में कहो तो -"एक द्रव्य का कार्य उस ही द्रव्य में अथवा उस द्रव्य के कार्य (पर्याय) को उस ही द्रव्य का बतलाया हो” वह निश्चय का कथन जानना । "एक द्रव्य का कार्य अन्य द्रव्य में अथवा उस द्रव्य के कार्य (पर्याय) को अन्य द्रव्य द्वारा करना बतलाया हो" वह व्यवहार का कथन जानना । जैसे मतिज्ञानरूप आत्मा की पर्याय को ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम द्वारा हुई कहना, यह व्यवहार कथन हुआ और उसी पर्याय को आत्मा कहना, यह निश्चय कथन है । व्यवहार के कथन - जैसी ही वस्तु को मान ले तो ऐसे श्रद्धान को आचार्यों ने मिथ्या श्रद्धा कहा है और ऐसी श्रद्धा को छोड़ने का आदेश दिया है - कारण ऐसी श्रद्धा करने से उस दोष को टालने का पुरुषार्थ खतम हो जाता है और श्रद्धा में पराधीनता आ जाने से वह वीतरागता की वाधक हो जाने के कारण,