Book Title: Shastro ke Arth Samazne ki Paddhati
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 15
________________ ( १५ ) वे समझ नहीं पाये । तब उनको व्यवहारनय से,तत्यश्रद्धान जानपूर्वक परद्रव्य के निमित्त मिटने की सापेक्षता द्वाग व्रत, शील, संयमादिरूप वीतराग भाव के विणेप बतलाये तब उन्हें वीतराग भाव की पहिचान हुई । इसी प्रकार व्यवहार विना निश्चय के उपदेश का न होना जानना" व्यवहार कथन अंगीकार करने योग्य नहीं है आगे इस ही बात को पुष्ट करते हैं "तथा व्यवहारनय ने नरनारकादि पर्याय ही को जीव कहा, सो पर्याय ही को जीव नहीं मान लेना।" "जीव के संयोग से शरीरादिको भी उपचार मे जीव गहा. तो कथन मात्र ही है......."ऐसा ही श्रद्धान करना।" "तथा अभेद आत्मा में ज्ञान दर्शनादि भेद किए सो उन्हें भेद रूप ही नहीं मान लेना" "संजा संख्यादि से भेद कहे मो कथनमान ही हैं, परमार्थ से भिन्न-भिन्न हैं नहीं-ऐसा ही श्रद्धान करना।" ___ "पर द्रव्य का निमित्त मिटने की अपेक्षा ने व्रतशील मंचमादिक को मोक्षमार्ग कहा, सो इन्हीं को मोक्षमार्ग नहीं मान लेना ...... इसलिये आत्मा अपने भाव रागादिक हैं उन्हें छोडगार बीतनागी होता है, इसलिये निश्चय से वीतराग भाव ही मोक्षमार्ग है ।... व्रतादिक को मोक्षमार्ग कहा नो नाथन मात्र ही है. परमापं ने वाम क्रिया मोक्षमार्ग नहीं है-ऐसा ही श्रदान करना।" पर नं० २५६ में कहा है कि "इसी प्रकार अन्य भी व्यवहारनय को अंगीकार नहीं करना, ऐसा जान लेना। व्यवहार उपदेश अपने लिए कैसे कार्यकारी है भागे प्रश्न मिग है कि "याग्नग पर उपदेश ही में कार्यकारी है या अपना भी प्रयोजन गाधना है?"

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