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बहुत बुद्धि से इनका सहज जानना हो और इनको जानने से अपने रागादिक विकार बढ़ते न जाने तो इनका भी जानना होओ, अनुयोग शास्त्रवत् ये शास्त्र बहुत कार्यकारी नहीं हैं इसलिये इनके अभ्यास का विशेप.उद्यम करना योग्य नहीं है ।
इस प्रकार उपर्युक्त पद्धति, विधान, प्रयोजन आदि को समझ कर चारों अनुयोगों का अभ्यास करने से यथार्थ तत्ववोध प्राप्त होगा जिससे मिथ्यात्व का नाश होकर सम्यक्त्व प्राप्त होता है क्योंकि पन नं. २३७ में कहते हैं कि "आत्मज्ञानशून्य आगमज्ञान भो कार्यकारी नहीं है।" टोडरमलजी साहब ने चारों अनुयोगों के विधान को समझ कर क्या करना इस विषय में पत्र नं. २८६ पर लिखा है कि "सो जहां जैसा सम्भव हो वहां वैसा समझ लेना।" इस प्रकार चारों अनुयोगों में कथन किस प्रकार का किस वात की मुख्यता को लेकर होता है यह शास्त्र अध्ययन के पहिले मोक्षार्थी को समझना आवश्यक है।
निश्चयनय एवं व्यवहारनय को समझने की प्रणाली
अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि उपर्युक्त कथन में निश्चय व्यवहार की बात आई है अतः उसका स्वरूप समझना भी तत्वनिर्णय करने के लिये अति आवश्यक है । इस विपय में मोक्षमार्गप्रकाशक पन नं. १६३ में बताया है कि "वहां जिनागम में निश्चय व्यवहाररूप वर्णन है। उनमें यथार्थ का नाम निश्चय है, उपचार का नाम व्यवहार है" तथा पत्र नं. २५१ में कहा है कि "व्यवहार