Book Title: Shastro ke Arth Samazne ki Paddhati
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 7
________________ सम्यक्त्व में उपचार किया और व्यवहारसम्यक्त्व के किसी एक अंग में सम्पूर्ण व्यवहारसम्यक्त्व का उपचार किया, इस प्रकार उपचार द्वारा धर्म हुआ कहते हैं।" पत्र नं. २८६ में "प्रथमानुयोग में तो अलंकार शास्त्र की का तथा काव्यादि शास्त्रों की पद्धति मुख्य है।" पत्र नं. २८६ में “सरागी जीवों का मन केवल वैराग्य कथन में नहीं लगता, इसलिये जिस प्रकार वालक को वताशे के आश्रय से औषधि देते हैं, उसी प्रकार सरागी को भोगादि कथन के आश्रय से धर्म में रुचि कराते हैं।" इस पद्धति को समझ कर प्रथमानुयोग का अभ्यास करना । करणानुयोग के कथन की पद्धति करणानुयोग के सम्बन्ध में पत्र नं. २६६ में "करणानुयोग में जीवों के व कर्मों के विशेष तथा त्रिलोकादि की रचना निरूपित करके जीवों को धर्म में लगाया है।" "पाप से विमुख होकर धर्म में लगते हैं।" पत्र नं. २७० में 'करण' अर्थात् गणित कार्य के कारणरूप सूत्र, उनका जिसमें 'अनुयोग' अधिकार हो, वह करणानुयोग है।" पन नं. २७५ में "जैसा केवलज्ञान द्वारा जाना वैसा करणानुयोग में व्याख्यान है।" तथा आगे कहा है “एक वस्तु में भिन्न-भिन्न गुणों का व पर्यायों का भेद करके निरूपण करते हैं तथा जीव पुद्गलादि यद्यपि भिन्न-भिन्न हैं तथापि सम्बन्धादि के द्वारा अनेक द्रव्य से उत्पन्न गति जाति आदि भेदों को एक जीव के निरूपित करते हैं, इत्यादि व्याख्यान व्यवहारनय की प्रधानता सहित जानना।"

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