Book Title: Shastro ke Arth Samazne ki Paddhati
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 9
________________ अपने वीतरागभाव के अनुसार भासित होते हैं। एकदेश व सर्वदेश वीतरागता होने पर ऐसी श्रावकदशा-मुनिदशा होती है क्योंकि इनके निमित्त नैमित्तिकता पाई जाती है ।.......वहां जितने अंश में वीतरागता होती है उसे कार्यकारी जानते हैं, जितने अंश में राग रहता है उसे हेय जानते हैं। सम्पूर्ण वीतरागता को परम धर्म मानते हैं।" ___ पत्र नं. २७७ में बताया है कि "चरणानुयोग में जिस प्रकार जीवों के अपनी बुद्धिगोचर धर्म का आचरण हो वैसा उपदेश दिया है। वहां धर्म तो निश्चयरूप मोक्षमार्ग है वही है, उसके साधनादिक उपचार से धर्म है, इसलिए व्यवहारनय की प्रधानता से नाना प्रकार. उपचार,धर्म के भेदादिकों का इसमें निरूपण किया जाता है ।" पन्त्र नं. २७८ में लिखा है "वह उपदेश दो प्रकार से दिया जाता है-एक तो व्यवहार ही का उपदेश देते हैं, एक निश्चय सहित व्यवहार का उपदेश देते हैं।" आगे कहा है "जिन जीवों को निश्चय व्यवहार का ज्ञान है व उपदेश देने पर उनका ज्ञान होता दिखाई देता है-ऐसे सम्यग्दृष्टि जीव व सम्यक्त्व सन्मुख मिथ्यादृष्टि जीव, उनको निश्चय सहित व्यवहार का उपदेश देते हैं" "व्यवहार उपदेश में तो बाह्य क्रियाओं की ही प्रधानता है।" "निश्चय सहित व्यवहार के उपदेश में परिणामों की ही प्रधानता है, .......वहां परिणाम के अनुसार वाह्य क्रिया भी सुधर जाती है ।" पन नं. २७६ में "जहां निश्चय सहित व्यवहार का उपदेश हो, वहां सम्यग्दर्शन के अर्थ, यथार्थ तत्वों का श्रद्धान कराते हैं । उनका जो निश्चय स्वरूप सो भूतार्थ है, व्यवहार

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