Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 5 6
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 14
________________ स्तवक पृष्ठ वाक्यांश: ५/६७ मावदिशा - हा RE! ४/२२२ पञ्च बाह्या द्विविज्ञेया [ अभिधर्मकोश ] ५/७४ परस्परापेक्षया तयोर्व्यवस्थानात [ ४/१६० पश्यन्नपि न पश्यती० [ धर्मकोत्ति ] ४/१८६ प्रत्यक्ष कल्पनापोडं [प्र. वा. २-१२३ ] ५,५१ बहिरर्थग्रहणापेक्षया० [स्या. र. पृष्ठ ३१८ ] ६/२०७ मावा येन निरू० [प्र. वा. २-३६० ] ४/३३ भावे ह्यष विकल्प: स्याद् [प्र. वा. ३-२७९-२८०] ६/२०६ मध्यमा प्रतिपत् सैव । ६/१६६ यत्प्रातस्तन्न मध्याह्न [ योगशास्त्र ४-५७ ] ४/१५८ यत्रैव जनयेदेना [ ] यदि च सुखादयो [स्या. २०] ४१८ यस्मिन्नेव हि संताने [ ] यो हि ज्ञानोपलाभः [ धर्मोत्तर ] लिंगस्याऽव्यभिचारस्तु [ दिङ्नाग ] ६/१५७ लोहितो यस्तु वर्णेन [ ] ४/१०६ चस्तुनोइनन्तरं सत्ता [ शान्तरक्षित ] ४/१७६ चारूपता चेद् व्युरनामेत् | वाक्यपदीय ] व्यक्ताऽध्यक्तात्मरूपं यव [ ] ६/२१२ सर्व एवायमनुमानानुमेय. | आचार्य ] ६/२११ सर्वदा सदुपायान [ श्लो. वा. निरा. १२८ ] ५/२६ सहोपलम्भनियमाद् [प्रमा. वि. परि.१] ४१८६ संहृत्य सर्वतश्चिन्तां [प्र. वा. २-१२४ ] ५/५६ सुखमालादनाकारं [ ] ५/५१ स्पष्टं प्रत्यक्षम् [प्र. न. तश्या . २-२ ] स्वभावविशेषश्च.... [भ्या स्वभावोऽपि स तस्येत्थं ४२२४ स्थविषयानन्तर..... .... [ ६६६ हेतवश्चानुपकार्य ... | शुभगुप्त ] नोधः-- चौथे स्तबक में उद्धरणों को सूचि नहीं दी गई है, उसका समावेश इस सूचि में कर लिया है।

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