Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 4
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ पृष्ठ । पृष्ठ विषय विषय जाति विना तुल्याकार प्रतीति न होने अरिसंवादाभिमानी को चन्द्रद्वय दर्शन की शंका १८० चन्द्रांश में प्रमाण है १९४ जाति विना बीजादि अवस्था में 'तरु:' चन्द्रद्वय दृष्टा को कल्पित चन्द्र का भान प्रतीति होने की साशंका १८१ बौद्ध १६५ व्यक्तियों का प्रतिनियम जातिनिर्भर मणिप्रभामणिदर्शन में प्रामाण्य क्यों नहीं? १६५ स्थूलादि का ज्ञान निर्विकल्प न होने पर आरोपित प्रामाण्य-अप्रामाण्यरूपद्वय का भी प्रमाणभूत अध्यक्ष है-उत्तरपक्ष १८२ कथन अनुचित १९६ निर्विकल्प से सविकल्प ज्ञान का उदय तद्ग्राहकत्व में तत्प्रभवत्व प्रयोजक नहीं १९६ असंभव १८२ ज्ञान में जड़-चेतन उभयरूपता आपत्ति १९७ सविकल्पबुद्धि विशदाकार न होने की शंका १८२ यदाकार यदुत्पन्न यदर्थ निश्चयजनक ऐक्याध्यवसाय में विकल्पानुपपत्ति ५८३ ज्ञान प्रमाण-यह असंगत १९७ वैशद्य सविकल्पक में भी सिद्ध है १८४ उर्वतासामान्य न मानने पर तिर्यक्विषयवन्द में सांशता आपत्ति .... सामान्य के अपलाप की आपत्ति १६८ विकल्प में वैशद्य स्वभाव विरुद्ध होने प्रतीति के बल पर लोकसिद्ध पदार्थों । की आशंका १८६ के स्वीकार की आपत्ति १६६ विकल्पावस्था निवृत्ति में निजिकल्प का स्वभावभेद बिना अत्यन्तायोग अनुपपत्ति १९९ उदय-बौद्ध १७ वासना प्रबोधक दर्शन या इन्द्रिय संबंध? २०० विकल्पावस्था निवृत्ति में सबिकल्प का वासनाजन्यत्वमात्र से विकल्प अप्रमाण . उदय भी सिद्ध है १८७ नहीं हो जाता २०० सविकल्पज्ञान में शब्द संसर्ग भान न होने गृहीतग्राही होने से विकल्प अप्रमाण नहीं का कथन मिथ्या १८ हो जाता २०१ अर्थ निर्णायक न होने पर निर्विकल्प ज्ञानान्तरसंवाद की अपेक्षा नियत नहीं है २०२ प्रत्यक्ष की असिद्धि १८८ नियतधर्म से विशिष्ट रूप वस्तु का ग्रहण प्रत्यक्ष से क्षणिकत्व निर्णय की आपत्ति १५८ ___ अशक्य १०३ शब्दयोजनाहीन भी अध्यक्ष अर्थ का सविकल्प प्रत्यक्ष मानस ज्ञानरूप नहीं है २०४ ___ निर्णायक है १८६ वे ही विशेष परस्पर कुछ समान क्षणिकत्वस्मरणापत्ति का विरोध-बौद्ध १६० परिणति वाले भी हैं २०४ पद-वर्ण की अस्मृति से दर्शनांश के अनु प्राप्ति आदि ज्ञानों में विकल्प का भव का समर्थन अशक्य ११० अन्वय अवश्य मान्य २०५ सहकारी सांनिध्य-असांनिध्य कथन व्यर्थ १९१ क्षणिकत्व का आनुमानिक निश्चय भ्रान्त क्षणिकत्व का विकल्पानुभव न होने में होने की आपत्ति २०६ __ कारण १६२ दलनिरक्षेप उत्पत्ति का असंभव २०७ क्षणिकस्ववत् सदंश के अनिश्चिय की अनित्यत्व का असंदिग्ध निश्चय असंभव २०७ बौद्ध को आपत्ति १९३ । सत्य रजतज्ञान भो असत्य होने की शंका २००

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 248