Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 4
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 10
________________ पृष्ठ नास १५१ विषय विषब पृष्ठ उपादान और निमित्तकारणता एकरूप नालिकेरदिपवासीका समनन्तर प्रत्यय __ से या भिन्नरूप से ? १४६ भी अन्य के समान नहीं है १६२ एक का अनेकशक्तितादात्म्य अनेकान्त बौद्धमत में परिणामवाद की आपत्ति १६३ वाद में १ अग्निज्ञान के अभाव में धूमज्ञानोद्भव तुल्य १६३ व्यावृत्तिभेद से भिन्न कार्य जनकता की अग्निज्ञान कुर्वद्रूपत्व पिशाच में शक्य १६४ अनूपपत्ति १४८ धूमनिष्ठ अग्निजन्यता के निश्चय में एकान्ततः एकस्वभावता में विरोध केवल घूमज्ञानहेतुता असंगत १६५ अरूपजनकच्यावृत्ति आदि रूप से कारणतानाहक प्रत्यक्षानुपलम्भ की । कारणता का असंभव १५० अनुपपत्ति १६६ चक्षु आदि में भिन्नकार्य जननस्वभाव पूर्वोत्तर ग्रहण का असंभव होने में आपत्ति अन्वय के अभाव में विकल्प को अनुपपत्ति १६८ सामग्रीपक्ष की सर्वथा अयुक्तता १५१ बोधान्बय के अभाव में जन्य-जनकभावाविशेषरूप से कार्य-कारण भाववादी नुपपत्ति १६६ बौद्धमत में दोष १५२ नीलज्ञान-पीतज्ञान के ऐक्य की आशंका १७० वास्य-वासक भाव में विकल्पों की नीलज्ञान-पीतज्ञान के ऐक्य की आपत्ति अनुपपत्ति १५३ का परिहार १७० वासक से वासना भिन्न होने पर दोष १५४ भिन्नकालीन आवार बस्तु के भेदक । वासक-वासना अभेदपक्ष में द्रव्य की नहीं हे १७१ सिद्धि १५४ दीर्घाध्यवसाय को धारावाहिक ज्ञान संक्रमण के विना वासनापरम्परा असंभव १५५ मानने में नैयायिक को आपत्ति १७१ परम्परा के आधार पर वास्यवासक 'एक साथ दो उपयोग नहीं होते बचन भावानुपपत्ति १५५ के व्याघात की आशंका १७२ स्वभाव से ही घट-मिट्टी के जन्य-जनक विभुपदार्थ के विशेषगुणों में क्षणिकता माव की असिद्धि १५६ के नियम का विसंवाद १७३ एक और दो का ग्राह्य-ग्राहक भाव अंगभेद होने पर भी अंगी का अभेद १७४ असम्भव १५७ एक प्रमाता को सदैव एक ही उपयोग । कारण और उसका स्वभाव अभिन्न रूप से स्वीकार्य १७५ गृहीत होगा-बौद्ध १५८ निविकल्पाध्यक्ष प्रमाण होने से प्रमाणादि धमिग्राहक से धर्मग्रह होने में क्षणिकत्व विभाग उच्छेद का दोष नहीं है प्रत्यक्ष की आपत्ति १५८ –विस्तृत पूर्वपक्ष बौद्ध १७६ नालिकेरद्वीपवासी को धूप से अग्नि के शब्दसंबद्ध अर्थबोधवादी शब्दशास्त्री मत १७६ ज्ञान की आपत्ति १५९ शब्दसंबद्ध अर्थबोधवादी का निरसन १७७ समनन्तरवैकल्य का उत्तर अयुक्त है १६० सविकल्प की शब्दानुविद्ध अर्थग्राहकता समनन्तर प्रत्यय होने पर भी एक की आपत्ति १७८ कारण, दूसरा नहीं १६१ । निर्विकल्प प्रत्यक्ष से जाति सिद्धि की शंका १७६

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