Book Title: Shastra Maryada Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 8
________________ धर्म और समाज समस्याएँ, खड़ी हैं - और उनका समाधान शक्य है या नहीं ? और शक्य है तो किस प्रकार ! १०२ १ जो केवल कुलपरम्परासे जैन है उसके लिए नहीं किन्तु जिसमें थोड़ा बहुत जैनत्व भी है उसके लिए सीधा प्रश्न यह है कि वह राष्ट्रीय क्षेत्र और राजनीति में भाग ले या नहीं और ले तो किस रीतिसे ? क्योंकि उस मनुष्य के मन में होता है कि राष्ट्र और राजनीति तो स्वार्थ तथा संकुचित भावनाका फल है और सच्चा जैनत्व इससे परेकी वस्तु है । अर्थात् जो गुणसे जैन हो वह राष्ट्रीय कार्य और राजकीय आन्दोलनमें पड़े या नहीं ? २ विवाहसे सम्बन्ध रखनेवाली प्रथाओं और उद्योग-धंधोंके पीछे रही हुई मान्यताओं तथा स्त्री-पुरुषजातिके बीच के सम्बन्धोंके विषय में आज कल जो विचार बलपूर्वक उदित हो रहे हैं और चारों तरफ फैल रहे हैं उनको जैन शास्त्रका आधार है या नहीं, अथवा सच्चे जैनत्वके साथ इन नये विचारोंका मेल हैं या नहीं, या प्राचीन विचारोंके साथ ही सच्चे जैनत्वका सम्बन्ध है ? यदि नये विचारोंको शास्त्रका आधार न हो और उन विचारोंके विना जीना समाज के लिए अशक्य दिखलाई देता हो, तो क्या करना चाहिए ? क्या इन विचारोंको प्राचीन शास्त्ररूपी बूढ़ी गायके स्तनोंमेंसे ही जैसे तैसे दुहना होगा या इन विचारोंका नया शास्त्र रचकर जैनशास्त्रका विकास करना होगा ? अथवा इन विचारोंको स्वीकार करनेकी अपेक्षा जैनसमाजके अस्तित्व के नाशको निमंत्रण देना होगा ? ३ मोक्षके पन्थपर प्रस्थित गुरुसंस्था सम्यक्प्रकार गुरु अर्थात् मार्गदर्शक होनेके बदले यदि गुरु - बोझ रूप होती हो, और सुभूमचक्रवर्त्तीकी पालकीकी तरह उसे उठानेवाले श्रावकरूप देवोंके भी डूबनेकी दशाको पहुँच गईं हो, तो क्या देवोंको पालकी फेंककर खिसक जाना चाहिए या पालकीके साथ डूब जाना चाहिए ? अथवा पालकी और अपनेको ले चले ऐसा कोई मार्ग खोज लेना चाहिए ? यदि ऐसा मार्ग न सूझे तो फिर क्या करना चाहिए ? और यदि सूझ जाय तो वह प्राचीन जैन शास्त्रमें है या नहीं और आज तक किसीके द्वारा अवलम्बित हुआ है या नहीं, यह देखना चाहिए ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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