Book Title: Shastra Maryada Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 1
________________ शास्त्र मर्यादा शास्त्र क्या है ? जो शिक्षा दे अर्थात् किसी विषयका परिचय तथा अनुभव प्रदान करे, उसे शास्त्र कहते है | परिचय और अनुभव जितने परिमाणमें गहरा और विशाल होगा उतने ही परिमाण में वह शास्त्र अधिक महत्त्वका होगा । इस प्रकार महत्वका आधार तो गहराई और विशालता है, फिर भी शास्त्रकी प्रतिष्ठाका आधार उसकी यथार्थता है । किसी शास्त्र में परिचय विशेष हो, गहनता हो, अनुभव भी विशाल हो, फिर भी उसमें यदि दृष्टि-दोष या दूसरी भ्रान्ति हो, तो उसकी अपेक्षा उसी विषयका थोड़ा भी यथार्थ परिचय देनेवाला और सत्य अनुभव प्रकट करनेवाला दूसरा शास्त्र विशेष महत्त्वका होगा और उसीकी सच्ची प्रतिष्ठा होती । ' शास्त्रमें ' ' शास् ' और ' त्र ' ये दो शब्द हैं । शास् ' शब्द परिचय और अनुभवकी पूर्तिका और त्र ' त्राणशक्तिका भाव सूचित करता है । जो कुमार्ग में जाते हुए मानवको रोक कर रक्षा करती है और उसकी शक्तिको सच्चे मार्ग में लगा देती है, वह शास्त्रकी त्राणशक्ति है । ऐसी त्राणशक्ति परिन्वय या अनुभवकी विशालता अथवा गंभीरतापर अवलम्बित नहीं, किन्तु केवल सत्यपर अवलम्बित है । इससे समुच्चय रूपसे विचार करने पर यही फलित होता है कि जो किसी भी विषय के सच्चे अनुमवकी पूर्ति करता है, वही ' शास्त्र ' कहा जाना चाहिए । ८ ऐसा शास्त्र कौन ? उपर्युक्त व्याख्यानुसार तो किसीको शास्त्र कहना ही कठिन है । क्योंकि आज तककी दुनियामें ऐसा कोई शास्त्र नहीं बना जिसमें वर्णित परिचय और अनुभव किसी भी प्रकार के परिवर्तनके पाने योग्य न हो, या जिसके विरुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 16