Book Title: Shashti Shatak Prakaranam
Author(s): Manvijay
Publisher: Satyavijay Jain Granthmala

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Page 272
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DECREASEGURO षष्ठिशतक-18 लाजै निज नामोच्चरे, ९ मार्नु सत पुर्ष ॥ वलि हेना गुण गाय हम, कर्म टले कटु तुर्ष ॥५४॥ प्रकरण-1 आण भंग क्रोधादि जुत, आप प्रसंस निमित्त ॥ धर्म सेवता लोकने, नही धर्म नहि कित्त ॥ ५५ ॥ ॥१२३॥ नीच प्रससाए भणे, उत्श्रुत धीत निलाज ।। जो भावी दुःख तेहने, सो जाने जिन राज । ५६ ।। भाषानुवादः बोधि नाश उत्सूत्रिके, जामण मरण अनंत ॥ प्राण तजै पण धीर तत, नहि उत्सुत्र भणंत ॥ ५७ ॥ अविधि कीर्ति न कर कदा, रुजु जन रंजन हेत ॥ शुभ कुल वधु किं भी किया, वेस्या चरित थुणेत ॥ भवभयथी अति भीरु जे, आण भंग भय तास ॥ भवभयथकी अभीरुने, आणा भंग न हास ॥५९॥ जोनसि स्तुत युत चेतना, किसो अस्तुतनो दोष ॥ धिर धिम् कर्मनकू यदा, लभध अलभ जिन पोस ॥2 करवू पर उपहास जे, ते अयुक्त जिनदास ॥ कुल प्रसूतके अगनि ले, धरमविषे जो हास ॥६॥ मिथ्यात्वे संतोष जस, जिनवर वचने द्वेष ॥ तसु पण सुद्ध मनादिए, परम सुहित उपदेश ॥ ६२ ॥ सरल स्वभावी स्वजन व्है, निर्विकल्प सष ठौर ॥ डसित साप ऊपर अपी, करे कृपा क्या ओर ॥१३॥ गृह व्यापार रहित घणा, मुनि पण समकित हीन ॥ इह सालंबन श्राद्धकू कहिये किसुं कुलीन ॥६॥18 | किमहिन उत् श्रुत भाषवू, उत श्रुत भाष्यु जोय ॥ तो सहि बूडिस भव्य तूं, निरर्थ जप तप होय ॥६५॥ जिम जिम जिनवच सुमनने, प्रगटे सम्यक् प्रकार ॥ तिम तिम लोक प्रवाहमें, धर्म भाति नट चार ॥ शुद्ध ज्ञान कर जसु हिये, सम्यक वसो जिनेश ॥ तमु आगे तृण जिम दिपे, मिथ्या धर्मि अशेष ॥६७ ॥१२३ ॥ 555 36363 For Private and Personal Use Only

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