Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सादर-समर्पण. तत्वज्ञं श्रीभ्रातृचंद्र, दीव्यं स्याद्वादवादिनम् । पदस्थं नयनिष्णातं, वंदे श्रीमुक्तिनंदनम् ॥१॥ परमपूज्य प्रातःस्मरणीय जगतशेठगुरु श्रीवडतपगच्छना. यक श्रीपार्श्वचंद्रसूरीश्वर संतानीय श्रीजैनश्वेताम्बराचार्यवर्य श्रीहर्षचंद्रसूरीश्वरजी महाराजसाहेबना शिष्य पंडित प्रवर महर्षिश्रीमुक्तिचंद्रगणीना धर्मपुत्र सुशिष्य प्रातःस्मरणीय परमोपकारी संवेगरंगरंगितात्मा वि० सं० १९३७मां क्रियोद्वारकारक परमकृपालु शान्तरसपयोनिधि चारित्रपात्रचूडामणि स्वनामधन्य श्रीमन्नागपुरीयवृहत्तपागच्छाधिराज आचार्यदेव श्री १००८ श्रीभ्रातृचंद्रसूरीश्वरजीमहाराजसाहेब ! आपश्रीजी! गच्छना नायक लायक हता,युगप्रवरजैनाचार्य हता अने कोमलविद्यावंत संतमहंतहता. आपश्रीजीए ! पवित्र श्री जिनागमनीवाणीथी विद्वत्ताभरी शान्तिमय उपदेशकरवानी पद्धतिथी अने मुनिजनने शोभेतेवा अमेक धार्मिक शुभकार्यो करवाथी घणाभव्यात्माओने मोक्षमार्गसन्मुख बनाव्याछे. आपश्री पूज्यजी: उत्तम जोवनजीवी अन्यधन्यात्माओने उत्तमजीवन जीववानी छापपाडी स्वर्गवासीथया. पवा अनेक उत्तमगुणोने धारणकरनारा आपश्रीजीतरफ आकर्षायीने अनेवली आपश्रीजी ! परमगुरुदेवश्रीपार्श्वचंद्रसूरीश्वरजीमहाराज साहेबना वचनामृतोपर परमश्रद्धाने धारण करनाराहता, तेथी तेमना रचेला “ सप्तपदी" तथा " विचारपट्ट" नामक आग्रन्थो आपश्रीजी साहेबने सादर समर्पणकरी हुं म्हारा आत्माने कृतार्थ मानुं छु. ली. आपश्रीजीनो पशिष्यमुनिद्धिचंद्र. For Private And Personal Use Only

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