Book Title: Saptapadi Shastra Author(s): Sagarchandrasuri Publisher: Mandal SanghPage 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ गुणानगृहस्वजनो न निर्वृतिं प्रयाति दोषानवदन्न दुर्जनः । चिरंतनाभ्यास निबंधनेरिता, गुणेषु दोषेषु च जायते मतिः ॥ १ ॥ खलः सर्सपमात्राणि, परच्छिद्राणि पश्यति । 44 आत्मनो विल्वमात्राणि पश्यमपि न पश्यति ॥ २॥ " अर्थात् - सज्जन गुण ग्रहण कर्या विना अने दुर्जन दोष बोल्या विना तृप्ति पामतो नथी कारणके लांबा काळना अभ्यासना संबंधे मेराएली मति गुणोमां अने दोषोमां उत्पन्न थाय छे. १ तेमां पण दुर्जन पुरुष सरसव जेवडा परना नाना दोषोने जुए छे अने पोताना मोटा मोटा बिलीना फल जेवडा दोषो जोवा छतां जोइ शकतो नथी. एवो दुर्जननो स्वभाव छे. २ तेथी पोतपोताना स्वभावना अनुसारे प्रवृत्ति करे छे. माटे एमां विशेष जणावा जरुर नथी. युगप्रधान श्रीपार्श्व चंद्रसूरिजीने ज्ञानीओना वचनपर संपूर्ण आस्ता हती, तेने लइ पंडितवीर्यनी जागृतिना अंगे संसारमायाजालपर उत्पन्न थएल तीव्र ज्ञानगर्भित वैराग्यना योगे उत्कृष्ट चारित्रवंत, वचनगुप्ति अने भाषा समितिथी ते सेवाएल हता. युगप्रधान श्रीपार्श्व चंद्रसूरिजीनी टुंकी जीवनरेखा जन्म - श्री आबुतीर्थना पवित्र पहाडना नीचे लगोलग पश्चिम दिशामा रायहमीरे वसावेल हमीरपुर नामना शहेरमा जेमा हाल पण पांच पवित्र जिनालयो जीर्ण अवस्थामा रहेला जोनारने नजरे पडे छे. त्यां वोसा पोरवाड ज्ञातीय श्रावककुलमां शिरोमणी धर्मिष्टपुरुषोमां अग्रेसर For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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