Book Title: Saptapadi Shastra Author(s): Sagarchandrasuri Publisher: Mandal Sangh View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना. श्रीपार्श्वचंद्रसूरीन्द्राः, कलौ कल्पद्रुमोपमाः । सदाचारा गुणैाप्ता, भवंतु शांतिदायकाः ॥१॥ आ अपार संसारमा जन्म-मरणना दुःखोथी बचवानो श्रेष्ठ उपाय श्रीवीतराग-परमात्मानी पवित्रवाणीनी उपासनासेवना छे. ते सद्गुरुना कथनथी प्राप्त थइ शकेले. श्री वीतरागनी आणा प्रमाणे कथन करनार अने पोते श्रीवीतरागनी आणाना अनुसारे यथाशक्ति सम्यकचारित्रमार्गमा प्रवृत्ति करनार होय ते सद्गुरु कहेवाय छे, सद्गुरु धर्माचार्यों पोते उत्तम चारित्रवाळा होयछे अने पोताना अनुयायिओने उत्तम चारित्रवान् बनाववासारु सूत्रानुसारे अनेक रचनाओ करनारा होयछे, तेथीज ते परमोपकारी कहेवाय छे. परमोपकारी परमगुरुदेव युगप्रवर आचार्यवर्य स्वनामधन्य प्रातः स्मरणीय युगप्रधान श्रीपाश्वचंद्रसूरीश्वरजी महाराजे जेनी आराधना सेवना करवाथी जीवनुं कल्याण थाय एवी समाचारी आश्रित आ "सप्तपदीशास्त्र" रचेल छे. जेमां मुख्य सात बीनाओनुं वर्णन करवामां आवेल छे. (१) प्रथम गच्छस्थिति-गच्छनी मर्यादा, गच्छ कोने कहेवाय ते संबंधि स्वरुप वर्णवेलं छे. (२) बीजी बीना संभोगासंभोगविधिनी छे. केवा मुनिओ-चारित्रियाओ मंभोगी-एक बोजानी साथे आहार For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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