Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
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निवेदन.
" प्रबलेऽपि कलिकाले स्मृतमपि यन्नाम हरति दुरितानि । कामितफलानि कुरुते, स जयति जीरावलिपार्श्वः " ॥ १ ॥
आ ' समाचारी समाश्रित- सप्तपदीशास्त्र आदिग्रन्थः परमपूज्य परम गुरुदेव श्रीनागपुरीय बृहत्तपागच्छाधिराज युगप्रधान श्रीपार्श्व चंद्रसूरीश्वरजी महाराजे रचेल छे. ते ग्रन्थनी हस्तलिखित प्रतियो - नकलो बहुओछी जोवामां आववाना कारणे आ ग्रन्थने छपावी प्रसिद्ध करवामां आवे तो घणाने वचवानो अनुकुलता थाय, तेथी परमोपकारी प्रातःस्मरणीय आचार्यदेवश्री भ्रातृचंद्रसूरीश्वरजी महाराजना सुशिष्य पू० आचार्यवर्य श्री सागर चंद्रसूरीश्वरजीमहाराजे पोतानी देखरेखनीचे पोतानाशिष्य मुनिराज श्रीवृद्धिचंद्रजीमहाराजपा से प्रेसकोपी तैयारकरावी अने ते ओश्रीनाज उपदेशधी मांडल गाम निवासी श्रीपार्श्वचंद्रसूरि सद्गुरुचरणकमलोपासक श्रीसंघे आपेल द्रव्यसहायताथी आग्रन्थ प्रसिद्ध करवामां आवेलछे. आ ग्रन्थना प्रुफ सुधारवा विगेरेनी कालजी पण उपरोक्त आचार्यश्री तथा मुनिराजे संपूर्ण राखेल छे छतां पण मुद्रायंत्रना दोषथी बीबाओ उडी जवाथी के टूटी जवाथी, दृष्टिदोषथी अथवा भ्रांतिथी जे कां अशुद्धि रहीगएल होय तेने सुधारी लेवा समजु गुणग्राही विद्वान वर्गने विनति छे. आ ग्रन्थना संपादक गुरु-शिष्यने भूविंदनकरी अने सहाकोनो उपकारमानी हूं विरमुं कुं. ली० प्रकाशक.
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