Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
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पाणी विगेरेनो व्यवहार राखी शके ? अने क्यां सुधी संभोगी पणुं चाल्यु? अने क्यारे संभोग असंभोगीपणुंथयु ? ए विगेरेनुं वर्णन जेमां करवामां आवेल छ, (३) रोजी बीना रात्रिदिवसमां मुनिराजोए केवी प्रवृत्ति करवी, रात्रिसंबंधी क्रियाओ, दिवससंबंधी क्रियाओ-आचरवानी विधिओ सूत्रानुसारे बताववामां आवेल छ (४) चोथी बीना पांचे प्रतिक्रमणनी विधिओ सूत्रपंचांगीना आधारे बताववामां आवेल छे, (५) पांचमी बोना उदयतिथीनुं स्वरुप सूत्रवृत्तिओना अनुसारे बतावेल छे. (६) छठी बीना श्रावकोना उपधाननो विधि आगमानुसारे बताववामां आवेल छे. (७) सातमी. बीना उपदेशविधि मुनिराजोए केवा प्रकारनो उपदेश आपयो? ते सूत्रानुसारे बतायामां आवेल छे. आ ग्रन्थमा मुख्य बीनाओ जे आ उपर बतावी ते सात छे. ते सिवाय पेटाभेदे घणी बीनाओ बतावेल छे. श्री समाचारी समाश्रित-श्रीसप्तपदी शास्त्रनी एकपत परमपूज्य आचार्यदेव श्रीभ्रातृचंद्रसूरीश्वरजी आश्रित अमदावाद सामळानी पोळना मोटा उपाश्रयना ज्ञान भंडारमाथी प्राप्तथइ. ते प्रायः शुद्ध त्रणसोवर्ष पहेलानी लखेल २६ पत्रवाळी हती अने बीजी,प्रत मारीपासे हती, तेना पत्र २७ छे. ते प्रत पोणा बशे वर्ष पहेलानी लखेल जणाय छे अने ते पण घणा भागे शुद्ध छे. ए बन्ने प्रतोना आधारे मांडल गाममां मुनिश्रीवृद्धिचंद्रनीए पोताना अवकाशना समयमां म्हारी देखरेख नीचे लगभग आठ म
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