Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देश कहेवाय के केम ? उपधान शेना वहेवा ? कोण व्यवरावे ? तेनो विधि केवो ? साधुने स्त्रीओना परिचयमा रहेवाथो केवा दोष लागे? तेनो परिचय करवो के छोडवो? प्रतिष्ठा अंजनशलाका कोण करावे ? ए करणी कोनी छे ? त्यागीने कल्पे ? पोतपोताना गच्छनी ममता धारण करवी के वीतरागदेवनी आणा आराधवी ? इत्यादि बीनाओ संभलावनारने शुं जुदो मत-पंथ काढ्यो एम कही शकाय खरं ? गड्डरोप्रवाह के अंधपरंपरा जेने चलायवी होय तेने भले एम लागे के आ जुदो पंथ छे, परंतु सूत्र-आगमना अनुसारे उपदेशकरनार अने पोते चालनार जे होय ते वीतरागप्रणीत मार्ग चालनार गणाय छे, तेने जुदा पंथे चालनार न कहेवाय. "तेज साचुं अने शंका विनानुं जे जिनेश्वरोए कहेल होय" आगे श्रद्धा ज्यारे थाय त्यारेज सम्यकत्वसन्मुख जीव थयो गणाय. आ दर्शनमा पोतपोतानी मरजी मुजब स्वीकारेल मत-पंथ के गच्छो कोइ कांड काम आवता नथी. हां, जे वीतरागनी आणाना अनुसारे-सूत्र-सिद्धान्तमा बतावेल मर्यादा प्रमाणे चालनार गच्छ होय ते तो त्रणे काळ वंदनीय-सेवनीय अने आराध्यछे, ते सिवाय होय तो संसारनी आलपंपालनी माफक ए पण एक जीवने आलपंपाल छे, कारणके वीतरागनी आणा विना जीवनी कांइ पण कार्यसिद्धि थइ शक्ति नथी. जो केवल खोटो गच्छकदाग्रहज पोषाय तो तेथी संसारनी वृद्धि थाय छे, माटे सूत्र-सिद्धांतमा जणावेल वीत For Private And Personal Use Only

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