Book Title: Saptapadi Shastra Author(s): Sagarchandrasuri Publisher: Mandal Sangh View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु प्रार्थनाॐकारध्येयरूपा प्रथर्माजनपतिः शान्तिकर श्रीमान श्रीनेमिनाथो यदकुलतिलकः पापहत्तों जनानाम् ॥ मायावीजात्मरूपः सकलसुखकरः पार्श्वदेवाधिदेवो। देयाच्छीवर्द्धमानो ग्रहगणधरयुग वर्द्धमान पदं मे ॥१॥ श्रुतवी स्मरण जिनपतिप्रथिताखिलवाङ्मयी, गणधराननमण्डपनतको । गुरुमुखाम्बुजखेलनहंसिका, विजयते जगति श्रुतदेवता ॥१॥ શ્રી સરસ્વતી સ્તુતિ (અનુષ્ટપલેક-અષ્ટપદી) " श्वेतपद्मासना देवी, श्वेतपद्मोपशोभिता। श्वेताम्बरधरा देवी, श्वेतगन्धानुलेपना ।। अचिंता मुनिभिः सर्वै,-ऋषिभिः स्तूयते सदा । एवं ध्यात्वा सदा देवी, वाञ्छितं लभते नरः" ॥१॥ ॥ श्रीपरमगुरुदेव-स्तुतिः ॥ ( स्रग्धरा-वृत्तम् ) श्रीमत्पार्धन्दुसूरिः सकलमुनिजनरर्यपादारविन्दो, भक्तेभ्यस्सत्प्रबोधं सपदि भवगदच्छेदशक्तिं ददानः । सोऽयं गच्छाधिनाथो जयति जिनमते भव्यसौभाग्यकीर्ति,स्तं भक्त्या भो पुमांसो! नमत नतिगुणश्रेणिपं तत्त्वधीशम् ॥१॥ अर्थः-समस्त मुनिजनोथी सेववायोग्य चरणकमळवाळा, भक्तोने उत्तम उपदेश आपनारा, तत्काळ संसाररुप रोगने छेदवानी शक्ति उत्पन्नकरनारा, विशाळ सौभाग्य तथा कीर्तिने धरावनारा, ते आ नागपुरीयतपागच्छना अधिपति श्रीमान पार्थचन्द्रसूरि जनशासनमां जय पामे छे. हे पुरुषो! नमस्कार करवायोग्य गुणोनी पंक्तिने धारणकरनारा अने तस्व. ज्ञानमां बृहस्पति जेवा तेओश्रीने भक्तिथी नमस्कार करो.१ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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