Book Title: Saptapadi Shastra
Author(s): Sagarchandrasuri
Publisher: Mandal Sangh
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प्रभु प्रार्थनाॐकारध्येयरूपा प्रथर्माजनपतिः शान्तिकर श्रीमान श्रीनेमिनाथो यदकुलतिलकः पापहत्तों जनानाम् ॥ मायावीजात्मरूपः सकलसुखकरः पार्श्वदेवाधिदेवो। देयाच्छीवर्द्धमानो ग्रहगणधरयुग वर्द्धमान पदं मे ॥१॥
श्रुतवी स्मरण जिनपतिप्रथिताखिलवाङ्मयी, गणधराननमण्डपनतको । गुरुमुखाम्बुजखेलनहंसिका, विजयते जगति श्रुतदेवता ॥१॥
શ્રી સરસ્વતી સ્તુતિ (અનુષ્ટપલેક-અષ્ટપદી) " श्वेतपद्मासना देवी, श्वेतपद्मोपशोभिता।
श्वेताम्बरधरा देवी, श्वेतगन्धानुलेपना ।। अचिंता मुनिभिः सर्वै,-ऋषिभिः स्तूयते सदा । एवं ध्यात्वा सदा देवी, वाञ्छितं लभते नरः" ॥१॥
॥ श्रीपरमगुरुदेव-स्तुतिः ॥ ( स्रग्धरा-वृत्तम् ) श्रीमत्पार्धन्दुसूरिः सकलमुनिजनरर्यपादारविन्दो, भक्तेभ्यस्सत्प्रबोधं सपदि भवगदच्छेदशक्तिं ददानः । सोऽयं गच्छाधिनाथो जयति जिनमते भव्यसौभाग्यकीर्ति,स्तं भक्त्या भो पुमांसो! नमत नतिगुणश्रेणिपं तत्त्वधीशम् ॥१॥
अर्थः-समस्त मुनिजनोथी सेववायोग्य चरणकमळवाळा, भक्तोने उत्तम उपदेश आपनारा, तत्काळ संसाररुप रोगने छेदवानी शक्ति उत्पन्नकरनारा, विशाळ सौभाग्य तथा कीर्तिने धरावनारा, ते आ नागपुरीयतपागच्छना अधिपति श्रीमान पार्थचन्द्रसूरि जनशासनमां जय पामे छे. हे पुरुषो! नमस्कार करवायोग्य गुणोनी पंक्तिने धारणकरनारा अने तस्व. ज्ञानमां बृहस्पति जेवा तेओश्रीने भक्तिथी नमस्कार करो.१
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