Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 11
Author(s): M Vinaysagar, Jamunalal Baldwa
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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518 Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (Jaipur-Collection)
1451/7069 (11) ऋषभदेवाष्टकम्
ऋषभदेवसुरासुरसेवितः प्रतिदिनं विबुधैः परिपूजितः । मम कुरुष्व सदा सुखसन्तति, सतत सौख्यलताविततोन्नतिम् ॥१॥ तवसुधाधिकनाम मया श्रुत, हृदि सुखातिधिया सुधिया धृतम् । इह विलोकितभाव च साम्प्रतं, तदनु देव सदागमनं कृतम् || २ ||
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भुवननाटकसंनटितोस्म्यहं, ऋषभदेव विना तव दर्शनम् । कुरु कृपामय तारय मां प्रभो, भवतु भक्तिरियं च भवे भवे ॥ ५ ॥
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श्रीमच्छरोजिनलाभसूरिगुरोः साहाय्यमासाद्य च,
शैलग्रावसुदुर्गमार्गगमनं संलंध्य यात्रार्थकः । विज्ञप्ति प्रकरोति वाचकमिमां नाम्ना जगद्वल्लभः
भक्तिस्ते ऋषभप्रभो भवतु मे नित्यं परत्रेह च ॥ ६॥
इति ऋषभदेवतीर्थ पस्य स्तुत्यष्टकं कृतम् ।
1474/6955 ( 3 ) कल्याणमन्दिरस्तोत्रम् सबालावबोधम्
प्रणम्य देलुल्ल जिनेन्द्रचन्द्रं नत्वा गुरून् श्रीशुभसुन्दराह्वान् । लिखामि बाल प्रतिबोध हेतोर्थं स्तवस्य, सुखदैकधाम्नः || १ ||
कल्याणमंदिर स्तवनउ अर्थ कहि छ । तिहां पहिलं स्तवननी उत्पत्ति वर्णत्रइ छइ । उज्जयिनी नगर श्रीविक्रमादित्यतउ पुरोहित तेहनउ पुत्र सिद्धसेन दिवाकर वादीन्द्र वृद्धवादि गुरु सिउ वादकरिवा भृगुकच्छि पुहतउ । वृद्धवादी गुरु नगर बाहिरि मिल्या । गोवालिया साखि करी वाद करिया मांडिउ । पहिलउं सिद्धसेन संस्कृत बोलउ । गोवालीचा सांभली ए कांई न ही । ..................
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इत्थं० युगल व्याख्या - इत्थं इाई प्रकारिइं विधिवद् विधिपूर्वक हे जिनेन्द्र समीहित स्थिर धी बुद्धि छइ जेहनी, ए ह्वा जे भव्य स्तवता हरं हे विभो स्वामिन् संस्तवं स्तवन रचयन्ति करई । भव्य किस्या छ ? सान्द्र निविड जे उल्लसन् पुलक रोमांच तेराइ करी कंचुकित वींटिउ अग—ग छइ जेहनउ । बलि भव्य किस्या छ ? तबिम्ब ताहरी प्रतिमानु निर्मल जं मुखाम्बुज मुखकमल तिहां बद्ध बांधिउं लक्ष एकाग्रपणउं छइ जेहे । तेसिउं
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