Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jaipur Collection Part 11
Author(s): M Vinaysagar, Jamunalal Baldwa
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Pt. XI (Appendix)
517
अशुभकर्म जेहना । अजित नइ शान्ति वेहू देव केहवा छइ ? 'जयगुरु संतिगुणकरे' जय कहीयइ जगरइ गुरु गुरुई जे छइ शान्ति तेह रूप जे गुण तेहना करणहार । 'दोवि जिरणवरे' दोवि कहीयइ बेवइ जिणवर अजितशान्ति । परिणवयामि' नमन करू ॥१॥
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Closing :
जो पढइ० जे पढई गुणइं अनइ जे निसुणइं सांभलइं । 'उभगो०' उभयकाल प्रभात सन्ध्या समइ 'अजिय संति०' अजितशान्तिस्तवन । 'नवि हुँति०' ते पुरुषनइ रोग न हुइं अनइ पूर्वोत्पन्न पूर्वहि जे अपना छइ रोग तेही ते जाइं नासई । ते भरणी सदाई स्तवन गुरिणवउ ।। ३६॥
ए श्री अजितशान्तिस्तवननी वृत्ति गोविन्दाचार्य कीधी छइ । श्री वर्धमानसूरिनी प्रार्थना लगीति । पण्डित जननइ योग्य छइ। परं मन्दमति मुग्धजनना अवबोध भणी श्री ख० श्रीजिनचन्द्रसूरि प्रादेशि वा० रत्नमूत्ति. गणिशिष्य वा० मेरुसुन्दरगणिइ श्री अजितशान्तिस्तव वालावबोध कीधउ । तेह करतां जे पुण्य हुई तिणि करी मुझनइ संघसविहुं नइ कल्याण हुवउ ॥छ।
Colophon:
इति श्रीअजितशान्तिस्तवनबालावबोधः समाप्तः ॥ छ । ग्रन्थाग्रं. ४५० ॥ शुभम्भवतु ॥
लिखितं पं० रंगनिधानमुनिना स्ववाचनार्थं । श्रीतक्षकपुरे । संवत् १६१७ वर्षे ॥
PostColophon :
1431,3155 (2) अम्बिकास्तोत्रम्
Opening :
देवगन्धर्वविधाधरर्वन्द्यते जय जयामित्रवित्रासिनी विश्रुते । नूपुरारवसंशुद्धभुवनोदरे, मुखरवरकिङ्किणीचारुतारस्वरे ॥१॥ ॐ ह्री मन्त्र रूपे शिवे शङ्करे, अम्बिके देवि जय जन्तु रक्षाकरे । स्फुरत्तारहारावलीराजितोरुस्थले, कर्णताटङ्करुवीरगल्लस्थले ।।२।।
Closing :
इति जिनेश्वरसूरिभिरम्बिका - भगवती शुभमन्त्रपदेष्टुता । प्रवरपात्रगता शुभसम्पदं, वितरतु प्रणयं च शिवं मम ॥८॥ इति श्रीअम्बिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
Colophon:
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