Book Title: Sankheshwar Mahatirh
Author(s): Jayantvijay
Publisher: Vijaydharmsuri Jain Granthmala

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Page 12
________________ समर्पणम् । सौराष्ट्रस्य समुद्धर्ता संहर्ता पापवर्त्मनाम् । आदर्शो साधुतायाश्च चन्द्रवत् शान्तिदायकः ॥१॥ तेषां मे पूज्यपादानां वृद्धिचन्द्रमहात्मनाम् । समर्पये इमं ग्रन्थं पवित्रे पाणिपङ्कजे ॥२॥ -प्रशिष्याणु जयन्तविजयः

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