Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 6
________________ www.vitragvani.com (vi) इसलिए ऐसे समकिती जीव वे स्वयं ही सम्यग्दर्शन हैं । इसलिए ऐसे समकिती जीवों का दर्शन वह साक्षात् सम्यग्दर्शन का ही दर्शन है उनकी उपासना वह सम्यग्दर्शन की ही उपासना है, उनका विनय - बहुमानभक्ति वह सम्यक्त्व का ही विनय - बहुमान - भक्ति है । अपने सौभाग्य से अपने को अभी सम्यक्त्व के आराधक जीवों की सत्संगति का और उनकी उपासना का सुअवसर प्राप्त हुआ है। पूज्य गुरुदेव, भव्य जीवों को सम्यग्दर्शन का स्वरूप समझा रहे हैं । आप श्री की मंगलकारी चरणछाया में रहकर सम्यग्दर्शन की परम महिमा का श्रवण और उसकी प्राप्ति के उपाय का श्रवण-मन्थन करना वह मानव जीवन की कृतार्थता है । जिसे सम्यग्दर्शन प्रगट करके इस असार संसार के जन्म-मरण से छूटना हो और फिर से नव माह की गर्भ जेल में न आना हो, उसे सत्समागम के सेवनपूर्वक आत्मरस से सम्यग्दर्शन का अभ्यास करना चाहिए । पूज्य गुरुदेव श्री के प्रवचनों / चर्चाओं तथा शास्त्रों में से दोहन करके सम्यग्दर्शन सम्बन्धी दस पुस्तकों का संकलन करने की योजना है; उसमें से यह चौथी पुस्तक प्रकाशित हो रही है। जीवों को सम्यक्त्व की महिमा समझ में आये और उसे प्राप्त करने की प्रेरणा जागृत हो, यह इस पुस्तक का उद्देश्य है । जिन मुमुक्षुओं ने यह पुस्तक प्रसिद्ध करके जिज्ञासुओं को भेंट प्रदान की है... और इस प्रकार सम्यग्दर्शन के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित की है, उन मुमुक्षुओं को धन्यवाद है । इस सम्यग्दर्शन का संकलन करते समय जागृत हुई भावनायें मेरी आत्म-परिणति में भी सम्यक्त्व का संकलन करो... और सम्यक्त्व की महिमा जगत में सर्वत्र व्याप्त हो... यही भावना । ब्रह्मचारी हरिलाल जैन पौष पूर्णिमा संवत् २९४७, सोनगढ़ Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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