Book Title: Samyag Darshan Part 04
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai

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Page 5
________________ www.vitragvani.com निवेदन विश्व का श्रेष्ठ रत्न और सिद्धि सुख का देनेवाला सम्यग्दर्शन, उस सम्यग्दर्शन के गुणगान गाते हुए और उसकी प्रेरणा देते हुए यह चौथी पुस्तक सम्यक्त्व पिपासु साधर्मियों के हाथ में देते हुए आनन्द होता है। सम्यग्दर्शन ही आत्मा का सच्चा जीवन है। मिथ्यात्व, मरण है और सम्यक्त्व, जीवन है। पर से भिन्न निजस्वरूपसत्ता का अस्तित्व जिसमें नहीं दिखाई देता, ऐसे मिथ्यात्व में प्रतिक्षण भावमरण से जीव दु:खी है और जिसमें अपने स्वरूप का शाश्वत् स्वाधीन उपयोगमय अस्तित्व स्पष्ट वेदन में आता है, ऐसा सम्यक्त्व-जीवन परम सुखमय है। अपने आत्मा का सम्यक्रूप से दर्शन करना, उसे सच्चे स्वरूप से देखना, ऐसा सम्यग्दर्शन हम सभी का कर्तव्य है। समयसारादि शास्त्र भी उसी का बोध प्रदान करते हैं। 'दर्शाऊ एक विभक्त को आत्मातने निज विभव से'- ऐसा कहकर आचार्यदेव ने परद्रव्यों से भिन्न तथा परभावों से भिन्न आत्मा का शुद्ध एकत्वस्वरूप बतलाया है। ऐसे निजस्वरूप को देखना / श्रद्धा करना । अनुभव करना, वह सम्यग्दर्शन है। स...म्य...ग्द...र्श...न! कैसा आह्लादकारी है ! अपने जीवन का यह महान कर्तव्य है... इसका नाम सुनते ही आत्मार्थी को भक्ति से रोमांच उल्लसित हो जाता है। सत्य ही है-अपनी प्रिय में प्रिय वस्तु देखकर किसे हर्ष नहीं होगा! हजारों शास्त्रों में हजारों श्लोकों द्वारा जिसकी अचिन्त्य महिमा का वर्णन किया है-ऐसे सम्यग्दर्शन की क्या बात! - ऐसा सम्यग्दर्शन साक्षात् देखने को मिले तो कैसी आनन्द की बात! इस काल में गुरुदेव के प्रताप से ऐसा सम्यग्दर्शन साक्षात् देखने को मिलता है क्योंकि भावनिक्षेप से सम्यक्परिणत जीव वे स्वयं ही सम्यग्दर्शन हैं। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.

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