Book Title: Samdhikavya Samucchaya
Author(s): R M Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 12
________________ भूमिका जेमा सो उपरांत प्राकृत आख्यानो संग्रहाया छे-मां पण बे संधि काव्यो मळे छे (१) सोमप्रभाख्यान अने (२) चारुदत्ताख्यान. आ उपरांत हजी अप्रगट प्राकृत माहित्यमा संधिकान्यो होवानो घणो संभव छे. आम अगियारमो शताब्दीना अंतभागमा ज संधिकाव्यो. रचावानी शरूआत थई गयेली. उपरोक्त त्रणे संधिओनी भाषा शिष्टमान्य अपभ्रंश छे. आ पछी छेक सो वर्षना गाळा पछी रत्नप्रभसूरि-कृत उपदेशमालावृत्ति (ई. स. ११८२) मां संधिकाव्यो मळे छे. अहीं आवतां भाषा-स्वरूपमां वधु ने वधु प्रादेशिक वलणो नजरे पडे छे. बीजु, संधिकाव्यनी स्वतंत्र रचनाओ पण मळवा लागे छे, तेम ज तेनो विषय पण आख्यायिका के चरित्रनो ज न रहेता व्यापक बनवा लागे छे. अहों ग्रंथस्थ संधि भोना विषयवस्तु तरफ नजर नाखवाथी आ हकीकत स्पष्ट थाय छे, उपदेशप्रधान होवा छतां आकर्षक घटना-विधान, सरळ भाषा अने प्रवाही छंदोरचनाने कारणे सधिकाग्यो भाववाही ऊर्मिलाच्यो बनो शयां छे. संधिकाव्यनों आ प्रवाह छेक अदारमी सदीना अंत मुधो चाले छे' ए स्वाभाविक छे के पंदरमी सदी पछ.नी संधिोनी भाषा वधु ने वधु अर्वाचीन थती जाय छे. विषय-वस्तु अने मूळ-स्रोत १. ऋषभ-पारणक-संधि : आ संधिनो विषय प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेवना जीवन-प्रसंगनो छे. प्रथम दीर्घ तपश्चर्याने अंते भगवानने पौत्र श्रेयांसकुपारे इक्षुरसथी करावेल पारणानो प्रसंग केन्द्रमा राखी भगवानमा गृहस्थ-जीवन, तपश्चर्या अने मुनि-जीवन-टूकु वर्णन कविए कर्यु छे. आवश्य आ प्रसंग सौ प्रथम उल्लेखायो छे.. २. वीरजिन-पारणक-संधि : आमां चरम तो कर भगवान महावीर स्वामीने चन्दनवालाए करावेल पारणानो विषय केन्द्रमा छे. पिताना राज्यनो नाश अने मृत्यु, मातार्नु अपहरण अने अवसान, पोतानी बेहाल दशा-आवी अवस्थामां राजकुमारी चन्दनबाला भगवान महावीरने भावपूर्वक पारणु करावी महापुन्यनु उपार्जन करे छे। ____ 'अंतकृत्दशा' मां चन्दनबालानी कथा मूळस्वरूपमा मळे छे. ३. गजसुकुमाल-संधि : देवकीना पुत्र अने कृष्णना नाना भाई गजसुकुमालनी प्रेरक कथा आ संघिमां छे. कमारावस्थामा ज वैराग्यरंग लागतां भगवान नेमिनाथ पासे दीक्षा लई, ते ज दिवसे एक रात्रिनी प्रतिमा (एक प्रकारर्नु निश्चल ध्यान) धारण करी गजसुकुपाल उग्र परीसह समभावपूर्वक सहन करी अंतकृत् केवली थई निर्वाण पामे छे. आ कथा 'अन्तकृत्दशा सूत्र'मां त्रीजा वर्गमां आवे छे. १. जुओ-अपभ्रंश भाषा के संधिकाव्य और उनकी परम्परा : अगरचंद नाहटा ('राजस्थानी' वर्ष १, पृ. ५५-६४) २. अहीं तथा पछीना आगमग्रन्थोना संदर्भो Prakrit Proper Names, Parts 1-2 IL D. Series-28 and 37) ना आधारे आपवामां आव्या छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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