Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit

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Page 3
________________ जिनकी जनमपुरी नामके प्रभाव हम,अपनो स्वरूपलख्ये सानसो भलक में । तेई प्रभु पारस महारसके दाता अब दीजे मोहि साता हगलीला के ललक में ॥३॥ सिद्ध भगवानकी स्तुति। अडिल्ल छंद--अविनाशी अविकार, परम रसधाम, । " • माधान सरवंग, सहज अभिराम हैं। शुद्ध वुद्ध अविरुद्ध अनादि अनंतहैं। जगत शिरोमनि सिद्ध, सदाजयवंतहैं ॥४॥ साधरूप भगवानकी स्तुति। सवैया इकतीला--ज्ञान के उजागर सहज सुख सागर -- सुगुण रतनागर वैराग रसभख्यो है। सरनकी रीत हरै मरन को भैन करै, करनसों पीठ दे चरण अनुलस्याहै ॥ धरमके मंडन भरमको बिहंडन जु, परम नरम हैके करमसों लर है। ऐलो मुनिराज भुवलोक में विराजमान, निरखि बना रसी नमस्कार कस्यो है॥५॥ समकितीकी स्तुति। . सवैया तेईसा--भेद विज्ञान जग्यो जिनके घट, ". चित्त भयो जिम चंदन । केलिकर शिव मारगमें जगम जिनेश्वरके लघुनंदन । सत्य स्वरूप सदा जिन्हके . अवदात मिथ्यात निकंदन । संत दशा तिन्हकी है करै कर जोरि वनारसि वंदन ॥६॥ ___ सबैया इकतीसा--स्वारथ के सांचे परमारथके सांचेरि मांचे सांचे बैन कहै सांचे जैनमती हैं । काहूके विरोधी हि परजायवृद्धि नाहि, आतम गवेषी न ग्रहस्थहैं न । हैं। सिद्ध रिद्ध वृद्धि दीसै घटमें प्रगट सदा, अंतरकी

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