Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ अर्थः एक पुत्रनो जन्म थयो. एक दहामो श्रीवर्धमानमरिना शिष्य श्रीजिनेश्वरमूरिए पाताना चरणान्यामाथी ते नगरोने पवित्र करी. अजयकुमारे वैराग्य थ। तेमनी पाने जैनदिक्षा ग्रहण करी. पनी श्री वर्धमानमरिनी अनुमति पूर्वक तेमने फक्त सोल वर्षनीज उमरे विक्रम संवत 2000 मां प्राचार्यपद प्रापयामां आव्यं. हवे ते समयमां दुकाळ आदिना मबत्रयी आगमोनी टी. कानो बिच्छेद थयो हतो. एक दहामो श्री अजयदेवमूरिजी मध्यरात्रि ज्यारे ध्यानमा लीन यया हता, ने समये शासनदेवीए आवीने तेमने कहा के, पूर्वना आचार्योए अग्यार अंगोनी टीका बनावी हती, पण काळसंबंधि दुपणोयी फक्त बे अंगो शिवाय बाकीना अंगोनी टीकामनो विच्छेद थयो । माटे आप ते अंगोनी टीका रचीने संघपर कृपा करो? सारे आचार्यजीए कहां के, हे शासनमाना! आQ गहन कार्य करवाने हैं अल्पबुध्धिान शी रोते समर्थ थान केमके ते कार्यमा जो कदाच उत्सूत्र याय, तो महा आपदारूप समुश्मा निमम यवं पर; तेम आपनी आझर्नु नखंघा पण थर्बु जाइए नहीं. सारे शासनदेवीए कह्यु के, हे आचार्यजी? आपने ते कार्य मांटे समर्य जाणीनेज में को बे. तेष ते टीकानी रचनापा तमोने जे संदेह होशे, ते ९ श्री मंधरस्वामीने पूतीने तमारा ते संदेहर्नु निवारण करीश. नेम फक्त माझं स्मरण करवायीज हुं तमारी पा. से हाजर यश. ते साजळी अजयदचमूरिए उत्साहपूर्वक ते कार्यनो भारंन कयों तथा ते कार्य संपूर्ण यता सुधि तेमणे आं. || बेलनो तप कर्यो. तथा पोनानी कयुतानमुजय शासनदेवीए पण नेमने ते कार्यमा मदद आपी. पण ते आंबेलतपथी तथा राविना जागरणना प्रयासयी शरीरमाना रूधिरमां रिगाम यवायी आचार्यजीपर कुट नामना दुष्ट रोगे हुमलो कर्यो सारे अ. न्यदर्शनी आदिक पर्षालु लोकोने तेमनी निंदा करवानुं कारण मन्यु के, टीकामी रचनामां यएला नत्मूत्रमाणधी का चार्यपर गुस्ने थएला शासनदेवोए, शिक्षा करवाना हेतुयी तेमने या दशाए पहोंचाड्या दे. ते अपवाद मांजळी आचार्यमहाराज दिलगिर थया. पली रात्रिए घरावीन तेमना संगन निवारण करें तथा कह्यु के, तंजन नामना गायनी पासे सेदिका नायनी नदिने किनारे भूमिनो अंदर श्री पार्श्वनाथजोनो प्रतिमा के, के जे प्रतिमाना प्रजावयी पूर्व नागार्जुने रनसिक साघेल ; ते प्रतिमान तमो प्रगट करीने सां महातीर्य प्रवीदो के जेथतमारी अपकीर्तिना नाशनीसाथ जनशासननी प्रना बना यशे. पढी या श्री अजयदेवमूरीश्वरजीए 'जयतिहुअण' नामना वत्रीस गाथा वाला स्तवनपूर्वक ते श्री स्तननपार्श्वनाथजीनी मतिमा संघ मक प्रगट करी. ते यी तेमनी घणी कीर्ति यत्रा साय जनशासननी उन्नति यइ. पडी धरणोंना वचनधी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 372