Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala,
Publisher: Sirsala Jain Pathshala
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साधु
प्रति
॥४॥
आठपकारनी प्रवचन मातानने सारीरीते नही पाळवावमेकरीने, तथा (नवएहं बंजचेरगुत्तीणं के0) नवप्रकारनो ब्रह्मचर्यनी ॥ सूत्र गुप्तिनने नही धारण करवावमे करीने, तथा ( दस बिहे समण धम्ने के0) दशनकारना श्रमणधर्यने सारीरीते नही परिपालन
अर्थः करवावमे करीने, एवीरीते (समणाणं जोगाणं के) श्रमणानां योगानां, एटले साधुनना योगोनी अंदरथी (जं खंमियं के०) यत् खंमितं, एटले जे कंई में खंमित कयु होय, तेमज (जं विराहियं के0 ) यत् विराधितं, एटले जे कंई विराध्यु होय, (तस्स के0 ) तस्य, एटले ते सर्व अतिचारसंबंधि ( मे के0 ) मम, एटले मारुं ( दक्कम के0) दुष्कृतं, एटले दुष्कृत ( मिला के0) मिथ्या, एटले मिथ्या थान? अर्थात् निष्फल थान ? ॥ ॥श्चाकारेण संदिसह नगवन् देवसियं आलोनं । जो मे देवसिन अश्यारो कन। बाकी नपरप्रमाणे ॥
अर्थः-(इच्छाकारेण के0 ) पोतानी इच्छावके करीने (जगवन् के) हे जगवन् ! (संदिसह के०) संदिशत, एटले मने आदेश आपो शुं करवा माटे? तो के (देवसिय आलोन के०) दैवसिक एटले दिवस संबंधि अतिचार आलोववामाहमने आदेश आपो?
॥ श्छामि पमिक्कमित्रं । जो मे देवसिन अश्यारो कन ॥ बाकी नपर प्रमाणे. ॥
॥३॥ देवसिक अतिचार.॥ ॥ गणे कमणे चंकमणे । ग्राऊत्ते अगाऊत्ने । दरियकाय संघहे । बीयकाय संघटे । बलकाय संघट्टे । थावरकाय संघहे । उप्प संघटे । गणान गणं संकामीया । देहरे गोचरी बाहीरनूमि जातां आवतां स्त्री तिर्यंचतणा संघट्ट परिताप नपञ्च दुआ, दिवसमांहि चारवार सजाय सातवार चैत्यवंदन कीयां नही, प्रतिलेखणा प्राधी पाठी नणावी, अस्तोव्यस्त कीधी, प्राध्यान रौश्ध्यान ध्यायां, धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्यायां नहीं, गौचरीतला दोष नपजता जोया नहीं, पांच दोष मंझ
॥
४
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