Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 11
________________ सूत्र साधु प्रति अर्थः एहं महत्वयाणं । उएवं जीवनिकायाणं । सत्तएहं पिमेसणाणं । अठएवं पवयणमानणं । नवण्हं बनचेरगुत्तीणं दस विहे समण धम्मे । समणाणं जोगाणं । जं खंमियं जं विराहियं । तस्स मि बामि उक्कम ॥ अर्थ:-(इच्छामि के०) है इच्छं छं, तथा ( कानस्सग्गं के) कायोन्सर्ग, एटले कानस्सग्गने ( गमि के0 ) स्थापन करूं छु. (जो के0 ) यः, एटले जे (मे के ) मया, एटले महारे जीवे (देवसिन के ) देवसिकः, एटले दिवससंबंधि ( अश्यारो के0 ) अतिचारः, एटले अतिचार (कन के0) कृतः. एटले को होय; ते अतिचार केवो तो के, ( काश्न के0 ) कायिकः, एटले कायासंबंधि, तथा (वा के०) वाचिकः, एटले वचनसंबंधि, तथा (माणसिन के०) मानसिकः, एटले मनसंवधि, तेमज (नस्सुत्तो के0) उत्सुत्रसंबंधि, नथा (नम्मग्गो के) नन्मार्गकः, एटले नन्मार्गसंबंधि, अर्थात् अवळा मार्गसंबंधि, तथा ( अकप्पो के ) अकल्पः, एटले जे कंई अविधियी करेलुं होय ते संबंधि, तथा ( अकरणि जो के0) अकरणीयः, एटले नही करवालायक जे कंई करेलुं होय, ते संबंधि तथा (दुकान के0) दुातः, एटले जे कंई हुर्ध्यान ध्यायु होय, ते संबंधि, तथा ( दुविचिंति के ) दुर्विचिंतितः, एटले मातुं कार्य चिंतव्यु होय, ते संबंधि, (अणायारो के0) अनाचारः, एटले अनाचार सेव्यो होय, ते संबंधि, वळी ( अणिच्छियो के0 ) अनिच्छितव्यः, नही इच्छवायोग्य कार्य इच्छयुं होय, ते तथा (असमण पानग्गो के0 ) अश्रमण प्रायोग्य, एटले साधुने नही आचरवा योग्य कार्य आचर्यु होय, ते संबंधिः हवे ते अतिचार शाने शानेविषे लाग्या होय ? तो के, (नाणे के ) छाने, एटले छाननेविषे, तथा (दसणे के) दर्शने, एटले दर्शननेविषे, तथा ( चरित्ते के ) चारित्रे, एटले चारित्रनेविषे, तथा (सुए के0) श्रुते, एटले सिद्धांतनेविषे, तथा (सामाइए के०) सामायिके, एटले सामायिक विषे, तेमज (तिएहं गुत्तीणं के ) त्रण गुप्तिनने नही पालवाथकी जे को अतिचार लाग्यो होय, तथा ( चनएहं कमायाणं के० ) चार कषायोने अंगीकार करवायी, तथा (पंचएहं महत्वयाणं के0 ) पांच महाव्रतोने सम्यकप्रकारे नही पाळबाथी, तथा (बएहं जीवनिकायाणं के0 ) बकायजीवोनी रहा नही करवावमेकरीने, तथा ( सत्तएहं पिमेसणाणं के) सातप्रकारनी पिसेपणाने सम्यकप्रकारे नही धारण करवावके करीने, नया (अठएहं पवयणमानणं के) dan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org |

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