Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala, 
Publisher: Sirsala Jain Pathshala

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Page 17
________________ माधु प्रतिण ॥ ससरस्कामोसे, आनलमानलाए, सोअणवत्तिआए, इत्थीविपरित्रासिाए, दिठ्ठीविप्परिआसियाए॥ सूत्र __ अर्थः–वली ( ससररकामोसे के० ) सरजस्कामर्षे, एटले रजवाली पृथ्वीनो आमर्ष करते बते, अर्थात् जे भूमीपर रज || अर्थः पमेली होय, तेवी मूमिनो स्पर्श करतेजते, जे कई अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने पमिकमुं हूं. वली (आनल मानलाए के0 ) आकुल आकुल पणावमे करीने स्त्री आदिकनी चितवना करी होय, अने ते संबंधि जे अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने पमिकमुं छ. वली ( सोअणवत्तिाए के0) स्वप्लवर्तिकया, एटले स्वप्ननी अंदर खी संबंधि जोगविलासने जे चितववो, अने ते संबंधि जे अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने पमिकमुं हुं. वली (श्त्यी विप्परिआसिआए के0 ) स्त्री विपर्या सिक्या, एग्ले स्त्री विपर्यासिकामे करीने जे कंई अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने , पमिकमुंछ. अर्थात् साधुए स्त्रीन सेवन नही करतुं जोए, अने ते थकी जे विपर्यास ते स्त्रीसेवा कहेवाय. अने तेवा प्रकारनी स्त्रीसेवाबमे करीने जे कोइ अतिचार मने लागेलो होय, ते अतिचारने हुँ पमिकमुटुं. वली (दिक विपरिआसिआए के0) दृष्टिविपर्या सिक्या, एठले दृष्टिविपर्यासबमे करीने जे कोइ अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने हुँ पमिकमुं छु. अर्थात् साधुए दृष्टिविपर्यास करवो जोए नही, एटले साधुए स्त्रीप्रते अनुरागवाली दधिकरवी जोइए नही, अने तेवीरीतनी स्त्रीप्रते अनुरागवाली दृष्टि करवावमे करीने जे कंई अतिचार मने लागेलो होय, ते अतिचारने हुँ पमिकमु छु. वली॥ मणविप्परिआलिआए, पाणनोअणविप्परिासियाए, जो मे देवसिन अश्वारो कन, तस्स मिठामि जम्॥ अर्थ-( मणविपरिआसिआए के० ) मनोवैपर्या सिक्या, एटले मारा मनसंबंधि विपर्यासपणुं होतेलते जे कंई अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने हुँ पमिकमुं छु, अर्थात् साधुए स्त्रीनेविषे मन नही कर जोइए, अने तेवीरोते स्वीना लोगविलाससंबंधि मननीअंदर जे कंचितवेलुं होय, ते संबंधि जे कंई अतिचार मने लागेलो होय, ते अतिचारने हुँ पमिकमुं छ. वली (पाणलोअणविप्परिआसिआए के0 ) पानजोजनवैपर्यासिक्या, एटले पाननोजनना विपर्यासपणायें करीने जेको अतिचार मने लागेलो होय, ते अतिचारने हुं पमिकमु छु. अर्थात् रात्रिए अथवा दिवसे चारप्रकारना आहारनी अंदर नही नपनो dan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org |

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