Book Title: Sadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Author(s): Sirsala Jain Pathshala,
Publisher: Sirsala Jain Pathshala
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साधु
प्रतिo
॥ ५ ॥
farer टाया नही, मात्रं प्रापुंजे लीधुं प्रापुंजी भूमिकाए परवव्युं, देहरा नृपाश्रयमांहि पेसतां निसरतां निसिही आवस्सही कहेवी विसारी, जिननुवने चोरासी आशातना, गुरुप्रतें त्रिस आशातना, अनेरुं जे कांई दिवस संबंधिकं पापदोष लाग्यं होय, ते सवि हुं मने वचने कायाएं करीने तस्स मिचामि मं ॥
अर्थः–( ठाणे कमणे चंक्रमले के० ) वेसवाउठवामां तथा हालवा चालवामां, तेमज (आनत्ते अणाऊत्ते के० ) उपयोगी वा योगयी ( हरियकाय संघट्टे के० ) वनस्पतिकायनुं मर्दन होतेउते, (वीयकाय संघट्टे के० ) बीजोनुं मद्दन होते, ( सकाय संघट्टे के० ) सकायनुं मर्दन होनेबते, ( यावर काय संघट्टे के० ) स्थावरकायनुं मद्दन होतेबते, ( उप्परसं ho) मकादिकनुं मर्दन होतेबते, तथा ( ठाणानुवाणं संकामीया के० ) जीवाने एक स्थानकेथी बीजेस्थानके खसेमतेबते, जे कोइ व्यतिचार लाग्यो होय, तेने हुं पमिकमुं छं. * वाकीनो अर्थ स्पष्ट बे.*
॥ ४ ॥ रात्रिक अतिचार ॥
॥संयाराजहराकी । परियट्टा की। प्राऊट सकी । पसारणकी। पिय संघट्टणकी। संथारोकतरपट्टो टाली अधिकुं नपगरणवावर्युं, अणप मिले हलाव्यं, मात्रं प्राप किले धुं ली धुं, प्रापुंजी भूमिए परव्यं, परवतां प्रजाह जस्स गो की धोनही, परठव्या पूढे वार त्रण वोसिरे वो सिरे की धुनही, संथारा पोरसी जगवा विसारी, पोरसी जणाव्याविना सुता, कुस्वप्न लाधुं, सुपनांतरमांहि शिळनी विराधना दुइ, या दो चिंतव्युं, संकल्प विकल्प कीधो, रात्रिसंबंधिन जे कोइ अतिचार लाग्यो होय, ते सवी मने वचने कायाए करी तस्स मिचामि डुकरं ॥
॥ ५ ॥
अर्थ:- ( संयारा नट्टकी के० ) संथारापर सुताबाद एकबाजुनुं पमखु पोंज्याविना फेरववाथी ( परियट्टाकी के० ) वीजी बाजुनुं पासुं पोंज्याविना फेरववाथी (आऊट्टणकी के० ) पोंज्याविना शरीर संकोचवाथी ( पसारणकी के० ) पांज्या
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सूत्र
अर्थः
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