Book Title: Sabhashya Tattvarthadhigam Sutrani
Author(s): Motilal Laghaji Oswal
Publisher: Motilal Laghaji Oswal

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Page 14
________________ (१२) अथ चतुर्थोऽध्यायः। देवाश्चतुर्निकायाः ॥१॥ तृतीयः पीतलेश्यः॥२॥ दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः॥३॥ इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषद्यात्मरक्षलोकपालानीकप्रकीर्णकाभियोग्यकिल्बिषिकाश्चैकशः॥४॥ त्रायस्त्रिंशलोकपालवा व्यन्तरज्योतिषकाः॥५॥ पूर्वयोर्दीन्द्राः ॥६॥ पीतान्तलेश्याः ॥७॥ कायप्रवीचारा आ ऐशानात् ॥ ८॥ शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनःप्रवीचारा द्वयोर्द्वयोः॥९॥ परेऽप्रवीचाराः॥१०॥ भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधि द्वीपदिक्कुमाराः ॥ ११ ॥ व्यन्तराः किन्नरकिम्पुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षसभूत पिशाचाः॥१२॥ ज्योतिष्काः सूर्याश्चन्द्रमसो ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णतारकाश्च ॥ १३ ॥ मेरुप्रदक्षिणानित्यगतयो नृलोके ॥१४॥ तत्कृतः कालविभागः॥१५॥ बहिरवस्थिताः॥१६॥ वैमानिकाः ॥१७॥ कल्पोपपपन्नाः कल्पातीताश्च ॥ १८॥ उपर्युपरि ।। १९ ॥ सौधर्मशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकलान्तकमहाशुक्रसहस्रारेष्वानतप्राणतयोगरणाच्युतयोर्नवसुप्रैवेयेषु विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धे च ॥ २० ॥ स्थितिप्रभावसुखातिलेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविषयतोऽधिकाः ॥२१॥ गतिशरीरपरिग्रहाभिमानतो हीनाः॥२२॥ पीतपद्मशक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु ॥ २३ ॥ प्राग्वेयकेभ्यः कल्पाः॥२४॥

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