Book Title: Rushabh Shatak
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ अनुसंधान-२९ २. (द्वितीय परिच्छेद - पद्य-११) कन्याद्वयविवाहवर्णन (१) अश्विनीकुमारोए भगवाननी त्रिभुवनथी पण चढियाता गुणवाळी गाढ रूपश्रीथी पराभव पामीने उपदा (भेटणां) रूपे पोतानी बे बहेनो (भगवानने) भेट धरी । (त्यारे) जेमणे बन्नेना प्रतीक स्वरूप, अनन्यसदृश बे कन्याओगें पाणिग्रहण कर्यु तेवा, अनेक नरेन्द्रोथी वन्दित जिनने अमे वंदीए छीए । (२) (पद्य-१५) पशुपतिने गंगा अने गौरी एम बे प्रियाओ छे, (ते ज रीते) सूर्यने छाया अने छवि (प्रभा), विष्णुने श्री तथा गोयी अने कामदेवने रति तथा प्रीति(एम बब्बे पत्नीओ छे); आ रीते बधा देवोनो बे (पत्नी)नो मत, तेओमां (देवोमां) वर्तता मारे माटे पण योग्य छे एम विचारी जेमणे बे स्त्रीओ साथे लग्न कर्यां, ते प्रभु लक्ष्मी माटे थाओ । ३. (तृतीय परिच्छेद-पद्य ४) जटावर्णन (१) हे महाव्रतिन् ! तुं मारा भाई (यम)नो निर्दयतापूर्वक नाश करवा माटे उत्सुक न था- एवी विज्ञप्ति करवानी इच्छावाळी कालिन्दी (यमुना) ज जाणे भगवानना कर्ण पासे न आवी होय । तेवी जेमना कर्णमूलमां लटकती केशराजी शोभी रही ते भगवान तमने चिरकाळ सुधी श्री माटे थाओ। (२) (पद्य १२) हृदयरूपी कुण्डमां रहेलां शीतलकिरणोथी धवल ध्यानामृतने रक्षवानी इच्छाथी जाणे ब्रह्माए श्यामल सर्प (रक्षक तरीके) मूक्यो होय एवा, जेमनी भुजा पर विलसता अतसीना पुष्पतुल्य केशसमूहे सौभाग्यने धारण कर्यु ते भगवान सत्पुरुषोनी आबादी मारे थाओ । ४. (चतुर्थ परिच्छेद - पद्य ५) इक्षुरसपारणवर्णन (१) आ भगवान राजाओमां प्रथम, व्रतधारीओमा प्रथम, तेमज अरिहंतोमा प्रथम छे, (तेमना) उग्र तपनुं आ पहेलुं पारणुं छे; अने सर्वरसोमां इक्षुरस ज प्रथम (श्रेष्ठ) रस छे. तो भगवानने तेनाथी ज शुभ भोजन थशेएवी बुद्धिथी श्रेयांसे धरेलो इक्षुरस जेमणे पीधो ते जिनने अमे स्तवीए छोए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22