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भारतवर्ष के जिन महापुरुषों का मानव जाति के विचारों पर स्थायी प्रभाव पड़ा है उनमें भगवान् ऋषभदेव का प्रमुख स्थान है । उनके अनलोद्धत व्यक्तित्व और असाधारण व अभूतपूर्व कृतित्व की छाप जन-जीवन पर बहुत ही गहरी है । आज भी अनेकों व्यक्तियों का जीवन उनके निर्मल विचारों से प्रभावित है । उनके हृदयाकाश में चमकते हुए आकाशदीप की तरह वे सुशोभित हैं । जैन व जैनेतर साहित्य उनकी गौरव गाथा से छलक रहा है । उनका विराट् व्यक्तित्व सम्प्रदायवाद, पंथवाद से उन्मुक्त है । वे वस्तुतः मानवता के कीर्तिस्तम्भ हैं ।
भगवान् ऋषभदेव का समय भारतीय ज्ञात इतिहास में नहीं आता । उनके अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए आगम व आगमेतर प्राच्य साहित्य ही प्रबल प्रमाण है । जैन परम्परा की दृष्टि से भगवान् ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के तृतीय आरे के उपसंहार काल में हुए हैं ।' चौबीसवें तीर्थङ्कर भगवान् महावीर और ऋषभदेव के बीच का समय असंख्यात वर्ष का है ।
वैदिक दृष्टि से भी ऋषभदेव प्रथम सतयुग के अन्त में हुए हैं और राम व कृष्ण के अवतारों से पूर्व हुए हैं । 3
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जैन साहित्य में कुलकरों की परम्परा में नाभि और ऋषभ का जैसा स्थान है, वैसा ही स्थान बौद्ध परम्परा में महासमन्त का है । सामयिक परिस्थिति भी दोनों में समान रूप से ही चित्रित हुई है । सम्भवतः बौद्ध परम्परा में ऋषभदेव का ही अपर नाम महासमन्त हो ?
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लेखक की कलम से
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति
(ख) कल्पसूत्र
कल्पसूत्र
जिनेन्द्र मत दर्पण भाग० १ पृ० १०
दीघनिकाय अग्गज्ञसुत्त भाग - ३
(ख) जैन साहित्य का वृहद इतिहास भाग ० १ प्रस्तावना १० २२
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