Book Title: Rishabhdev Ek Parishilan Author(s): Devendramuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 5
________________ है। हमें प्रसन्नता है कि परम श्रद्धय पं० श्री पुष्कर मुनिजी महाराज के शिष्य उदीयमान साहित्यकार श्री देवन्द्र मुनिजी शास्त्री ने इस दिशा में यह एक महनीय प्रयत्न किया है। उन्होंने अनेक ग्रन्थों का परिशीलन करके भगवान ऋषभदेव के महान कतृत्व को, जिस संक्षेप किन्तु प्रामाणिक और तुलनात्मक शैली से प्रस्तुत किया है, वह वस्तुतः अभिनन्दनीय ही नहीं, किन्तु अनुकरणीय भी है। साथ ही अस्वस्थ होते हुए भी श्रद्धय उपाध्याय श्री जी ने भगवान आदिनाथ के महाप्राण व्यक्तित्व के विचार-बिन्दु को नवीन दृष्टि-परिवेश में उपस्थित कर जो महत्वपूर्ण प्रस्तावना से ग्रन्थ की श्रीवृद्धि की है, उसके लिए भी हम उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञ हैं। सन्मति ज्ञानपीठ के महत्वपूर्ण प्रकाशन आज साहित्य क्षेत्र में अत्यधिक आदर एवं गौरव प्राप्त कर रहे हैं । हमें विश्वास है कि यह प्रकाशन भी हमारी उसी गौरवमयी परम्परा की एक कड़ी बनेगा। पाठक इसे अधिकाधिक अपनाकर हमारा उत्साह बढ़ायेंगे । इसी आशा के साथ मन्त्री सन्मति ज्ञानपीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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