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ऋषभदेव का चरित्र जिस प्रकार जैन और वैदिक साहित्य में विस्तार से चित्रित किया गया है, वैसा बौद्ध साहित्य में नहीं हुआ । केवल कहीं-कहीं पर नाम निर्देश किया गया है । जैसे धम्मपद की 'उसभं पवरं वीर"५ गाथा में अस्पष्ट रीति से ऋषभदेव और महावीर का उल्लेख हआ है।६ बौद्धाचार्य धर्म कीर्ति ने सर्वज्ञ आप्त के उदाहरण में ऋषभ और वद्धमान महावीर का निर्देश किया है और बौद्धाचार्य आर्य देव भी ऋषभदेव को ही जैन धर्म का आद्य-प्रचारक मानते हैं ।
आधुनिक प्रतिभासम्पन्न मूर्धन्य विचारक भी यह सत्य तथ्य नि.संकोच रूप से स्वीकारने लगे हैं कि भगवान् ऋषभदेव से ही जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ है।
डाक्टर हर्मन जेकोबी लिखते हैं कि इसमें कोई प्रमाण नहीं कि पाश्र्वनाथ जैन धर्म के संस्थापक थे। जैनपरम्परा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को जैन धर्म का संस्थापक मानने में एक मत है। इस मान्यता में ऐतिहासिक सत्य की अत्यधिक सम्भावना है। __ प्रस्तुत प्रश्न पर चिन्तन करते हुए डाक्टर राधाकृष्णन् लिखते हैं कि "जैन परम्परा ऋषभदेव से अपने धर्म की उत्पत्ति का कयन करती है, जो बहुत ही शताब्दियों पूर्व हुए हैं । इस बात के प्रमाण पाये जाते हैं कि ईस्वी पूर्व प्रथम शताब्दी में प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव की आराधना होती थी। इसमें कोई सन्देह नहीं कि जैन धर्म वर्द्धमान महावीर और पार्श्वनाथ से भी बहुत पहले प्रचलित था।"
"यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि इन तीनों तीर्थंकरों के नाम आते हैं । भागवत पुराण भी इस बात का समर्थन करता है कि ऋषभदेव जैन धर्म के संस्थापक थे।"
५. धम्मपद ४।२२ ६. इण्डियन हिस्टारिकल क्वार्टली भाग ३, पृ० ४७३-७५ ७. इण्डि० एण्डि० जिल्द ६, पृ० १६३
(ख) जैन साहित्य का इतिहास-पूर्वपीठिका पृ० ५ ८. भारतीय दर्शन का इतिहास-डाक्टर राधाकृष्णन् जिल्द १, पृ० २८५
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