Book Title: Ratnasar
Author(s): Tarachand Nihalchand Shravak
Publisher: Tarachand Nihalchand Shravak

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Page 4
________________ (॥) . हम को मिल नहीं सकी. तब श्रद्धालु जैनी भाइयों का आग्रह देख कर हम ने उसी प्रति पर से पुस्तक छपाना प्रारंभ कर दिया और दूसरी प्रति मिलने का उद्योग करते रहे. पीछे से श्रीमद् विजय राजेंद्र सूरीश्वर मुनिराज ने कृपा करके शिवगंज के भंडार से प्रति भिजवा कर परम उपकार किया. दूसरी प्रति मिलने पर शुद्धाशुद्ध देखने में बहुत कुछ सहायता मिली. तथापि दोनों प्रतें न्यूनाधिक अशुद्ध होने से भली प्रकार संशोधन नहीं हो सका. अनेक स्थलों पर तो हस्तलिखित पाठ ज्यों का त्यों रखना पड़ा, कारण कि हमारे समझ में बराबर श्राया नहीं तो ग्रंथकार के अभिप्राय से विरुद्ध न छपजाने का ध्यान रखना पड़ा. . - आशा है कि श्रद्धालु जैनी भाई इस ग्रन्थ को आश्रय देकर परम लाभ उठावेंगे और हमारा उत्साह बढ़ावेंगे जिस से हम अपूर्व २ ग्रन्थ प्रकाश करके उन को भेट करने में समर्थ होवें. लि• निहालचन्द.

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