Book Title: Rasratna Samucchay
Author(s): Manikyadevsuri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 44
________________ रसरत्नसमुच्चयम् वज्रान्वितो विविधपैत्तिकपांडुशोफान्, सूतो निहंति गगनेन समं च गुल्मान् ||३६| रसोपनिषदं सम्यक् प्रवगम्य समासतः । माणिकेंदु समाॠणि तद्र सरहस्योदधेः ॥४०॥ इति परमजैनाचार्य-सिद्धश्रीमाणिक्यदेवविरचितायां रसामृतश्रियां रसरहस्यनाम द्वितीय अधिकारः समाप्तः छ। Jain Education International For Private & Personal Use Only ३५ www.jainelibrary.org

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