Book Title: Rajasthan Bhasha Puratattva Author(s): Udaysinh Bhatnagar Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 8
________________ उदयसिह भटनागर १४६ चौड़े थे। मीलों को भी इन्हीं का वंशज माना जाता है। मील > मिल्ल जाति को नृतत्व विशेषज्ञों ने राजस्थान की आदिम जाति माना है । १४ परन्तु डा० चाटुर्ज्या के मत के अनुसार वे बाहर से आयी हुई इस प्राथमिक दक्षिणाकार जाति के वंशज थे और ये भारत में प्रायों से पूर्व ही आ चुके थे। मार्यों द्वारा ये निषाद कहे जाते थे - ' इस निषाद जाति के लोगों ने भारत की कृषि मूलक सभ्यता की नींव डाली थी। गंगा की उपत्यका में इनकी बस्ती ज्यादातर हुई थी, और वहाँ ये लोग धीरे-धीरे द्रविड़ तथा पार्य लोगों से मिल गये............इनकी उपजातियाँ थीं, जिनमें दो मुख्य थे 'भिल्ल' और 'कोल्ल' लोग - जिनके उत्तर पुरुष ये हुए राजपुताने और मालवे के 'भील' लोग और मध्य भारत तथा पूर्व भारत के कोरकु, सन्थाल, मुन्हारी हो, नवर, गदब आदि कोल जाति के मनुष्य' १५ ये भील फोल बाज भी राजस्थान और मालवा में सर्वनि पहाड़ों की उपत्यका में तथा दक्षिण में इसी से सम्बन्धित पहाड़ियों में खानदेश तक और विन्ध्याचल के पहाड़ों और जंगलों में बसे हुए हैं। इन भीलों की यद्यपि प्राज अपनी कोई भाषा नहीं है धौर जो भाषा ये लोग बोलते हैं वह राजस्थानी - आर्य भाषा ही है जो थोड़ी बहुत स्थानीय विशेषताओं के साथ पूरे मीली प्रान्त में बोली जाती है । इनकी इस भाषा का प्रभाव श्रास-पास की स्थानीय भाषाओं पर भी देख पड़ता है ६ इसमें कुछ प्राचीन तत्व अवशेष के रूप में वर्तमान है जो किसी स्वतन्त्र प्रार्येतर बोली के अवशेष हैं । ये अवशेष दो रूपों में पाये जाते हैं। १. ध्वनि (उच्चारण) सम्बन्धी, श्रीर २. रूप ( शब्द ) सम्बन्धी यह मीली प्रभाव राजस्थान की भाषा पर भी व्यापक रूप में देख पड़ता है, जिसके कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण ऊपर दिये जा चुके हैं और आगे भी दिये जायेंगे। इन भीलों में से कई अपने को क्षत्रियों के वंशज (राजपूत) बतलाते हैं। इसका एक कारण तो यह हैं कि किसी समय राजस्थान और गुजरात में 14. Taking them as we find them now, it may be safely said that their present geographical distribution, the marked uniformity of physical characters among the more primitive members of the group, their animistic religion, their distinctive languages, their stone monuments, and their retention of a primitive system of totemism justify us in regarding them as the earliest inhabitants of India of whom we have any knowledge." -H.H. Risly, 'Ethnology and Caste'-Imperial Gazetteer of India (i) 299. १५. 'राजस्थानी ' पृ० ३७-३८ । १६. मील लोग मध्य भारत तथा विन्ध्या और सतपुड़ा की घाटियों से बढ़ते हुए दक्षिण में खान देश तक फैले हुए हैं और इनकी उच्चारण प्रवृत्ति का प्रभाव मराठी और गुजराती पर प्रबल है । सु.कु. चाटुर्ज्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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