Book Title: Rajasthan Bhasha Puratattva
Author(s): Udaysinh Bhatnagar
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 15
________________ राजस्थान भाषा पुरातत्व १५३ रान्त करने की है, जो अपभ्रंश की एक प्रमुख प्रवृत्ति थी। तेलुगु में तो यह प्रवृत्ति एक प्रधान प्रवृत्ति है: प्राचीन तमिल - अवन् (वह) कन्नड़ - अवरणु = भीली - वगु (वरण उस) ___,, - गुर्रम तेलुगु - गुरुमु = भीली - घोडु (= घोडो) भीली में यह उकारान्त प्रवृत्ति वर्तमान है। राजस्थानी सर्वनाम 'मणी',(= इसने) 'वणी' (उणी= उसने) के मल 'अण', 'वरण', (उरण), और तमिल 'अवन्' (तथा प्रवल - यह) तथा उससे विकसित कन्नड़ 'अवणु' में मौलिक समानता लगती है। 'अण' का मारवाड़ी रूप 'इण' है, जिससे हिन्दी 'इन' का विकास हुआ। इसी प्रकार 'उरण' से हिन्दी 'उन' का विकास हुप्रा ।२८ आर्यों के आगमन के समय उत्तर भारत में द्रविड़ प्रभुत्व काफी फैला हुआ था। पंजाब और राजस्थान में इनके अनेक राज्य थे। आर्य प्रसार से धीरे धीरे इनका ध्वंस हया। इससे पूर्व द्रविड़ों ने भीलों के राज्यों का ध्वंस किया । द्रविड़ तथा भीली में कुछ सम्बन्ध अवश्य रहा है। विशप काडवेल ने तमिल के जिन प्राचीन रूपों की जो खोज की थी उनसे कुछ इस प्रकार के उदाहरण यहां दिये जाते हैं और उनके समकक्ष उन भीली राजस्थानी रूपों को भी प्रस्तुत किया जाता है, जो इस तथ्य को और भी स्पष्ट कर देंगे:प्राचीन द्रविड़ को - प्रो = राजा को-प्रो-विल = राजा का घर विल, वल = घर, जैसे देवल देवगृह, देखो-वीडु, वीड़ो आदि कोट्टै = राजा का सुरक्षित घर कोट्ट, कोट = गढ़, दुर्ग, अर्न == राजा का स्थान रण, रुण, राणा, (रणभूमि, रणवास,) नाटु, नाडु = प्रदेश वाडु, वाड़ो, वाड, वाड़ी स्थान, सीमा, प्रदेश पुलवन = राजा का विरुद् गायक । पड़हो पड़वो, बड़वो=चारण, या राजकवि भाट, विरुद गायक, राज घोषणा करने वाला। कट्टलै - पझक्कम == राज्य सम्बन्धी, लोक झट्टक-पट्टक ताजीम मेवाड़ के व्यवहार, कानून कायदे राजवंश में वह सर्वोच्च राजकीय सम्मान जो किसी महत्वपूर्ण सामन्त को विशेष सम्मान में प्रदान किया जाता था । २८-हिन्दी में 'इन' तथा 'उन' सर्वनामों की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक अनुमान किये गये पर कोई अनुमान ठीक नहीं है । देखो-धीरेन्द्र वर्मा कृत हिन्दी भाषा का इतिहास पृष्ठ २६२-२६४ ॥ देखो 'लोकवार्ता' दिसम्बर १९४४ में पृष्ठ ४४ पर सुनीतिकुमार चाटुा का लेख 'द्रविड़' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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