Book Title: Raghuvansh Mahakavya Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey Publisher: Motilal Banarsidass View full book textPage 9
________________ उपोद्घात महाकवि कालिदास ___ लौकिक संस्कृत में कविता का प्रादुर्भाव महर्षि वाल्मीकि से हुआ। क्रौंचवध की एक साधारण-सी घटना से महर्षि के हृदय का शोक श्लोकरूप में परिणत हुआ और उन्होंने रामायण की रचना कर डाली। इसलिये वाल्मीकि हमारे आदिकवि हैं और उनका रामायण आदिकाव्य। आदिकवि की यह रचना संस्कृत वाङमय का अत्यन्त अभिराम निकेतन है। सहजता और सरसता इसका सर्वस्व है। विभिन्न अलंकारों द्वारा रसों की अभिव्यक्ति, प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण, वर्णन की यथार्थता और हृदयग्राहिता इसके अनुपम गुण हैं। आदिकवि वाल्मीकि की इसी शैली का उदात्त उत्कर्ष हमें महाकवि कालिदास में प्राप्त होता है। निस्सन्देह अपनी काव्यकला को उत्कर्ष की चरम सीमा पर पहुँचाने में वाल्मीकि ही कालिदास के प्रेरणास्रोत रहे हैं। रघुवंश में 'पूर्वसूरिभिः' कहकर उन्होंने वाल्मीकि की ओर ही संकेत किया है और रामायण को 'कविप्रथमपद्धति' कहा है । कालिदास को अपने काव्यों से जैसी अद्भुत ख्याति मिली वैसी उनके पूर्ववर्ती भास, सौमिल्ल आदि को, जिनका स्वयं कालिदास ने पादरपूर्वक स्मरण किया है, नहीं प्राप्त हो सकी और उनके परवर्ती अश्वघोष, हरिषेण, वत्सभट्टि आदि पर तो उनकी कविता का प्रभाव स्पष्ट ही दीखता है। भारत ही नहीं इससे बाहर भी उपलब्ध शिलालेखों तथा काव्यों में इनकी कविता का पर्याप्त अनुसरण पाया जाता है। इसका कारण है कालिदास के काव्यों की भाषा इतनी सरल और प्रवाहपूर्ण है कि उसे समझने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती। न कहीं क्लिष्ट कल्पना है, न कृत्रिमता। अलङ्कारों को गढ़ने का प्रयत्न नहीं है । वे स्वाभाविक रूप से आ गये हैं। गागर में सागर भरने की अद्भुत क्षमता इस कवि में हैं। रघुवंश के केवल १९ सर्गों में, महाकाव्यPage Navigation
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