Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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उपोद्घात जैसे रससिद्ध कवि की वाग्विदग्धता और कमनीयता के अभाव के कारण इसे किसी दूसरे कालिदास की रचना मानते हैं। अलङ्कार-शास्त्रों में इसके उद्धरणों का न मिलना भी यही सिद्ध करता है। २. मेघदूत
___ यह कालिदास की अनुपम प्रतिभा का विलास है। वियोगविधुरा प्रियतमा के पास यक्ष का मेघ द्वारा सन्देश भेजना कवि की मौलिक कल्पना है। लगभग ५० से अधिक टीकाओं एवं तिब्बती, सिंहली आदि भाषाओं में अनुवाद इस ग्रन्थ की लोकप्रियता का ज्वलन्त प्रमाण है। इसे आदर्श मानकर संस्कृत वाङमय में दूत-काव्यों या सन्देश-काव्यों की एक लम्बी श्रृंखला बनी है।
इसके दो भाग हैं पूर्वमेघ और उत्तरमेघ । पूर्वमेघ में कवि ने रामगिरि से अलका तक के मार्ग का वर्णन करते हुए सम्पूर्ण भारत के भौगोलिक और प्राकृतिक सुषमा-संबंधी अपने ज्ञानभण्डार को उजागर किया है और उत्तरमेघ में यक्ष के सन्देश द्वारा मानव-हृदय की सौन्दर्य-भावना और उदात्त प्रेम का अभिव्यंजन किया
महाकाव्य
१. कुमारसंभव
यह कालिदास की अद्भुत रचना है । यद्यपि वर्तमान में यह १७ सर्गों में उपलब्ध है किन्तु कवि की विदग्ध वाणी के विवेचकों ने केवल आठ सर्गों को ही कालिदास की रचना माना है, क्योंकि आलंकारिकों और सूक्तिसंग्रहकारों ने आठ ही सर्गों से उद्धरण दिये हैं और कविता के प्रबल पारखी टीकाकार मल्लिनाथ ने भी इन्हीं पर संजीवनी-टीका लिखी है । ६ से १७ सर्ग तक की रचना कालिदास की भाषा और शैली से मेल नहीं खाती।
इस संबन्ध में हमारा विचार है कि उक्त प्रमाणों के आधार पर ही शेष सर्गों को कवि की रचना न मानना इतना महत्त्व नहीं रखता। कुछ अन्तःसाक्ष्य भी इसमें महत्त्वपूर्ण हैं। कालिदास नैसर्गिक कवि हैं। उनका एक-एक शब्द व्यञ्जना से पूर्ण रहता है। काव्य का 'कुमारसंभव' नाम ही बताता है कि कवि को इतनी ही रचना करनी है जिससे यह संभावना हो कि अब निश्चय ही भगवान् शंकर के अमोघ वीर्य