Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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रघुवंशमहाकाव्य परम्परा दी गई है, वे हैं- निषध, नल, नभ, पुण्डरीक, क्षेमधन्वा, देवानीक, अहीनगु, पारियात्र, शील, उन्नाभ, शङ्खण, व्युषिताश्व, विश्वसह, हिरण्यनाभ, कौशल्य, पुत्र, पौष्य, ध्रुवसन्धि, सुदर्शन और अग्निवर्ण । ___ अन्त में विलासिता के कारण क्षयरोग से अग्निवर्ण की मृत्यु हो जाती है और उसकी गर्भवती रानी मंत्रियों की सलाह से राज्य को संभालती है । संक्षेप में यही पूरे काव्य का कथानक है।
कवि की लेखनी ने इस वंश का जिस रूप में चित्रण किया उसके अनुसार राजा दिलीप ने गुरु की आज्ञा से तप करके रघु-जैसा प्रतापी पुत्र पाया, १०० अश्वमेध किये, चिरकाल तक प्रजा का पालन किया, अन्त में रघु को राज्य देकर अरण्य में चला गया। रघु प्रताप और तेजस्विता में अपने पिता से बढ़कर हुआ। उसने दिग्विजय करके चक्रवर्ती सम्राट पद प्राप्त किया । अन्त में विश्वजित् यज्ञ में सर्वस्व दान कर दिया। रघु का पुत्र अज भी अपने पिता की तरह प्रतापी राजा हुआ और अज का पुत्र दशरथ भी। इस प्रकार से सभी राजा विद्वान्, धार्मिक, प्रतापी, यशस्वी, प्रजावत्सल और दानी हुए, जिन्होंने इस वंश की कीर्तियों को दिगन्तव्यापी किया ।
दशरथ के पुत्र राम असाधारण महापुरुष हुए। उनका स्थान केवल रघुकुल या भारतवर्ष में ही नहीं विश्व में अद्वितीय रहा। उनके उज्ज्वल चरित्र ने उन्हें तो मर्यादापुरुषोत्तम कहलाया ही, भारत को आदर्शपुरुष की जन्मभूमि होने का विश्व में गौरव भी प्रदान किया ।
कालिदास ने भी अपने काव्य में इन १५ सर्गों में सम्पूर्ण भारत की धार्मिक, आध्यात्मिक, आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक, राजनीतिक सभी प्रकार की संस्कृति का दिग्दर्शन कराते हुए रघुवंशरूपी सूर्य को प्रखरता तक पहुंचाया है। इसके बाद रघुवंश का गौरव क्षीणता की ओर उन्मुख हुआ।
राम के स्वर्गारोहण के बाद राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। जहां एक रघुवंशी प्रतापी राजा होता था वहां अनेक राजा हो गए; जहां एक राजधानी (अयोध्या) थी वहां अनेक राजधानियां हो गईं । कुश ने कुशावती को, लव ने शरावती को, भरत के पुत्र पुष्कल ने पुष्कलावती को और तक्ष ने तक्षशिला को, लक्ष्मण के पुत्रों-अङ्गद और चन्द्रकेतु ने कारापथ को, और शत्रुघ्न के पुत्रों ने मधुरा को अपनी-अपनी राजधानी बनाया। इस प्रकार रघु द्वारा प्रतिष्ठापित एक विशाल