Book Title: Raghuvansh Mahakavya
Author(s): Kalidas Makavi, Mallinath, Dharadatta Acharya, Janardan Pandey
Publisher: Motilal Banarsidass
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उपोद्घात है । कोई कालिदास को स्कन्दगुप्त के साथ जोड़ता है, कोई कुमारगुप्त के और कोई चन्द्रगुप्त द्वितीय के। गुप्तकाल भारतीय साहित्य का स्वर्णयुग था। अतः कालिदास-जैसे प्रतिनिधि कवि का वही काल होना चाहिये, यह कल्पना ही इस मत को माननेवालों का पाथेय है। रघु की दिग्विजय-यात्रा से समुद्रगुप्त की दिग्विजय का स्मरण, ग्रीक ज्योतिष और अश्वघोष की कविता का कालिदास पर प्रभाव आदि कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है जिनके आधार पर कालिदास को पांचवीं शताब्दी में माना जा सके। कालिदास का सीधा सम्बन्ध विक्रमादित्य से भारतीय जनश्रुति में माना गया है। गुप्तवंश में जो राजा विक्रमादित्य कहलाये वे नाम से नहीं उपाधि से विक्रमादित्य थे। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि विक्रमादित्य नाम का कोई प्रतापी राजा पहिले हो चुका था जिसके सदृश पराक्रमी होने से इन्हें यह उपाधि प्राप्त हुई। उन्होंने कोई सम्वत् नहीं चलाया। ग्रीक ज्योतिष का कोई प्रभाव कालिदास पर नहीं पड़ा । ज्योतिष की उत्पत्ति ही भारत में हुई है, ग्रीस वालों ने उसे भारत से सीखा--यह एक स्वतन्त्र विचार का विषय है। कालिदास ने ज्योतिष-सम्बन्धी ऐसे विषयों का प्रयोग किया है जो ग्रीक या अन्य ज्योतिष में ढूंढे नहीं मिल सकते। अश्वघोष पर कालिदास का प्रभाव था, कालिदास पर अश्वघोष का नहीं, इसका हम आगे विवेचन करेंगे।
परम्परागत ढंग से भारतीय साहित्य का अध्ययन करनेवाले प्रायः सभी विद्वान् एकमत से स्वीकार करते हैं कि कालिदास उज्जयिनि-नरेश परमारवंशीय राजा महेन्द्रादित्य के पुत्र विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में प्रमुख थे। ये ही विक्रमादित्य परम उदार, गुणग्राही और प्रतापी राजा थे जिन्होंने शकों को परास्त करके ई०पू० ५७ में विक्रमसंवत् चलाया था।' कालिदास और विक्रमादित्य का सम्बन्ध चिरकाल से भारतीय जनश्रुति का आधार बना हुआ है। अन्तःसाक्ष्यों से भी यही सिद्ध होता है कि कालिदास का वही स्थितिकाल है जो राजा विक्रमादित्य का था। इस सम्बन्ध में निम्नांकित साक्ष्य विशेष ज्ञातव्य हैं--
१. इस विषय में विस्तार के लिये देखें डॉ० राजबली पाण्डेय का 'विक्रमादित्य' नामक ग्रन्थ ।